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मोहे रंग दो लाल… पैरों और हाथों की शोभा बढ़ाने वाले आलता के बारे में जानें विस्तार से

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 14 Sep, 2023 02:33 PM
मोहे रंग दो लाल… पैरों और हाथों की शोभा बढ़ाने वाले आलता के बारे में जानें विस्तार से

भारतीय संस्कृति की धरातल पर कई ऐसी अनमोल चीजें हैं, जो भले ही पुरानी परंपरा का हिस्सा है लेकिन वे सभी बहुमूल्य हैं। अपने लाल रंग की चमक बिखेर रहा आलता भी इनमें से एक है। आलता का ऐतिहासिक संदर्भ संस्कृत शब्द 'लक्ष्य रस' से लिया गया है, जिसका अर्थ है लाख। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और बंगाल के साथ मिथिला और असम में इसकी छाप आज भी उसकी भूमि पर जीवित है। 

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समृद्धि का प्रतीक माना जाता है आलता

आलता पैरों और हाथों में लगाया जाने वाला लाल रंग का डाई है जिसे भारतीय समाज में शादी या फिर समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं में इसे  सोलह शृंगार  में से सबसे जरूरी माना गया है। वैसे तो  भारत में आलता का प्रचलन बंगाल, बिहार, ओडिशा से शुरू हुआ था। इसके बाद उत्तर प्रदेश के साथ मिथिला और कला के क्षेत्र में पहुंचा गया। यही वजह है कि आलता मुख्य तौर पर बंगाली शब्द है। 

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इस तरह तैयार किया जाता है आलता

पुराने समय मे आलता, कच्ची लाख को पीस कर व पानी मे पका कर तैयार किया जाता था। वह एक विशुद्ध "पर्यावरण अनुकूल" विधी थी। आजकल तो सिंथेटिक लाल रंग को पानी मे घोलकर शीशियों मे पैक करके बेचा जाता है। बंगाल में खास तौर पर विवाहित महिला आलता का प्रयोग हर त्योहार में करती हैं, जिसे खुशी का प्रतीक माना जाता है। आलता को लेकर मिथिला में मधुबनी कला भी बनाई जाती है। मधुबनी कला में भी आलता का रंग दिखाई देता है। 

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 मेहंदी से पहले आलता का था चलन

इसके अलावा मध्य प्रदेश में कई स्थानों पर आलता को महउरा बोला जाता है और वहां पर अनाज की उपज करने से पहले महिलाएं आलता से अपने पैरों को सजाती हैं।  खासतौर पर बारिश के मौसम में आलता महिला और पुरुष किसानों की पैरों की रक्षा करता है। शादी के समय दुल्हा और दुल्हन दोनों के पैरों में आलता लगाने का रिवाज उत्तर प्रदेश -बिहार और बंगाल में हैं। यहां तक मेहंदी के चलन से पहले आलता को ही शुभ के तौर पर हाथों में लगाया जाता था।  

 

नेपाली कल्चर में प्रसिद्ध है आलता

लोककथाओं में श्री कृष्ण का संदर्भ मिलता है जब वो राधा जी के पैरों में महावर या आलता लगा रहे होते हैं। आलता का एक स्वरूप नेपाली कल्चर में भी बहुत प्रसिद्ध है जहां लाल रंग को अलाह बोला जाता है और 'बेल विवाह' रिवाज के दौरान ये छोटी लड़कियों के पैरों में लगाया जाता है। साथ ही कई जगहों पर जब भी घर में लड़की पैदा होती है तो उसे सौभाग्य का प्रतीक मानते हुए पैरों में आलता लगाकर, उसकी छाप सफेद कपड़ें पर ली जाती है। इसे बेटी के आगमन का सुखमय चिन्ह माना जाता है। दुर्गा पूजा पर भी आलता पहनना बंगाली महिलाओं के लिए खुशियों भरा अनुष्ठान है।

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फैशन का भी बन गया है हिस्सा

अब तो यह फैशन का भी हिस्सा बनता जा रहा है। तभी तो  फैशन डिजाइनर सब्यसाची के फोट शूट्स में मॉडल्स के हाथों में हमेशा आलता लगा होता है। डिजाइनर की  मॉडल्स के हाथों को  पूरी तरह से लाल रखा जात है। उनके कपड़ों से मैच करता हुआ हाथों का रंग कई तरह से सब्यसाची के विजन को दिखाता है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला यानी कि कथक और भरतनाट्यम में पैरों और हाथों में आलता लगाना शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना गया है।
 

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