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भीष्म पितामह ने बताए थे अर्जुन को नियम, पति के साथ भोजन करने वाली औरतें पढ़ें ये खबर

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 03 Apr, 2021 10:20 AM
भीष्म पितामह ने बताए थे अर्जुन को नियम, पति के साथ भोजन करने वाली औरतें पढ़ें ये खबर

महाभारत ग्रंथ में भोजन करने के कुछ जरूरी नियम बताए गए हैं। माना जाता है कि अगर मनुष्य इन नियमोंं का पालन करते हुए भोजन करता है तो उसे सुख-समृद्धि के साथ वैभव की प्राप्ति होती है क्योंकि इससे उन्हें देवी-देवताओं का भी आशीर्वाद मिलता है। शास्त्रों में बताए गए ये नियम वैज्ञानिक दृष्टि से भी परिपूर्ण है। लेकिन हम यहां आपको शास्त्रों में बताए गए भोजन के नियम बताएंगे, जो ना सिर्फ आपके घर में धन की वर्षा करेंगे बल्कि आपको बीमारियों से भी बचाएंगे।

भीष्म पितामह ने दिए थे अर्जुन को भोजन से जुड़े टिप्स

भीष्म पितामह द्वारा अर्जुन को दिए गए संदेशों में कहा था कि थाली को अगर किसी का पैर लग जाए तो उसका त्याग कर देना चाहिए। बाल गिरे हुए भोजन को ग्रहण करने से दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता है। भाई को एक ही थाली में भोजन करना चाहिए। ऐसी थाली अमृत के सामान होती है, जिससे घर में सुख -समृद्धि और धन धान्य आता है। जबकि भीष्म पितामह के अनुसार, एक ही थाली में पति-पत्नी को भोजन नहीं करना चाहिए। ऐसी थाली मादक पदार्थों में भरी मानी जाती है। उनका कहना था कि पत्नी को हमेशा पति के बाद ही भोजन करना चाहिए। इससे घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है।

भोजन के पहले व बाद में क्या करें और क्या नहीं...

1. याद रखें कि भोजन करने से पहले पांचांग दो हाथ, दो पैर और मुंह धोकर ही भोजन करना चाहिए। इसके अलावा भोजन से पहले अन्नदेवता व अन्नपूर्णा माता का ध्यान करके ही भोजन की शुरूआत करनी चाहिए।

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2. महिलाओं को स्नान करने के बाद ही भोजन पकाना चाहिए। सबसे पहले तीन रोटियां एक गाय, एक कुत्ते और एक कौओ के लिए निकाल दें। इसके बाद अग्निदेव को भोग लगाकर ही सभी परिवार को भोजन परोसें।

3. नियम के अनुसार, पूरे परिवार को एक-साथ बैठकर भोजन करना चाहिए। इससे ना सिर्फ देवता खुश होते हैं बल्कि परिवार में भी प्यार बना रहता है। अलग-अलग भोजन करने से परिवार के सदस्यों में दरार आती है।

4. प्रात और साय काल ही भोजन का विधान है। ऐसा इसलिए क्योंकि पाचन क्रिया की जटाअग्नि सूर्यअस्त से 2 घंटे बाद तक और सूर्यास्त से 2 घंटे पहले तक प्रबल रहती है। एक समय भोजन करने वाले व्यक्ति को योगी और दो समय भोजन ग्रहण करने वाले व्यक्ति को भोगी कहा जाता है।

5. भोजन हमेशा पूर्व और उत्तर की ओर करके ही खाना चाहिए। मान्यता है कि दक्षिण दिशा में किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है जबकि पश्चिम दिशा की ओर मुख करके भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है।

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6. कभी भी बिस्तर पर बैठकर, हाथ और टूटे-फूटे बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि इसे अन्न देवता का अपमान माना जाता है। इसके अलावा मल-मूत्र, कलह-कलेश, पीपल, वतवृक्ष के नीचे भी भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। परोसे हुए भोजन की निंदा, जूते पहनकर और खड़े होकर खाना भी अनुचित माना गया है।

7. बहुत तीखा, मीठा और चटपटा भोजन नहीं करना चाहिए। आयुर्वेद भी राजसिक व तामसिक भोजन से परहेज करने की सलाह देता है क्योंकि यह आपको बीमार बना सकता है। आधा खाया फल, मिठाइयां, किसी का झूठा भोजन ना करें। इसके अलावा फूंक मारा, श्राद्ध, बासी और बाल गिरा हुआ भोजन भी नहीं करना चाहिए।

8. भोजन के समय मौन रहे या सिर्फ पॉजिटिव बातें ही करें। साथ ही भोजन हमेशा अच्छी तरह चबा-चबाकर खाएं। भोजन के तुरंत बाद चाय या पानी ना पीएं। भोजन करने के बाद टहलें जरूर।

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