
नारी डेस्क: माता- पिता के लिए हर बच्चा एक बराबर होता है, पर कई बार जाने- अनजाने में वह दूसरे बच्चे के जिदंगी में आने के बाद पहले बच्चे को बोझ में दबा देते हैं। इसे एल्डर चाइल्ड मिनी पेरेंट" (Elder Child Mini Parent) कहा जाता है जिसमें परिवार का बड़ा बच्चा, खासकर पहला संतान, ऐसे ज़िम्मेदारियों और कर्तव्यों को निभाने लगता है जो आमतौर पर माता-पिता की होती हैं। चलिए जानते हैं इस स्थिति से निपटने के तरीके
यह स्थिति क्यों बनती है?
यह परिस्थिति तब बनती है जब माता-पिता बहुत व्यस्त होते हैं (कामकाज या अन्य जिम्मेदारियों में)। बड़े बच्चे से ज्यादा छोटे बच्चे को देखभाल की ज्यादा जरूरत होती है। माता-पिता किसी कारणवश अनुपलब्ध या मानसिक रूप से थके हुए होते हैं, ऐसे में वह जाने- अनजाने में बड़े बच्चे पर छोटे को संभालने को दबाव बना दते हैं।
बड़े बच्चे पर क्या पड़ता है असर
भावनात्मक दबाव: लगातार जिम्मेदारियों से बच्चा तनाव और चिंता में रह सकता है।
स्वयं की पहचान खो देना: वह खुद को एक बच्चे की तरह महसूस नहीं कर पाता और अपनी रुचियों और इच्छाओं को दबा देता है।
जल्दी परिपक्व हो जाना: वह उम्र से पहले गंभीर, अनुशासित और समझदार बन जाता है – जिसे बाहर से अच्छा माना जाता है, लेकिन अंदर से यह असंतुलन पैदा कर सकता है।
गिल्ट और परफेक्शनिज्म की भावना: कई बार वह खुद को दोषी मानने लगता है अगर वह किसी की मदद न कर पाए या गलती कर दे।
माता-पिता क्या कर सकते हैं?
"एल्डर चाइल्ड मिनी पेरेंट" एक ऐसी स्थिति है जिसमें बड़ा बच्चा अनजाने में माता-पिता की भूमिका निभाने लगता है, जिससे उसके भावनात्मक विकास और आत्म-पहचान पर असर पड़ सकता है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि परिवार में संतुलन और संवाद बना रहे। ऐसे में बड़े बच्चे को उसका बचपन जीने का मौका दें, उसकी भावनाओं को समझें और सराहें। बड़े बच्चे की छोटे कामों में मदद ले सकते हैं, लेकिन पूरा बोझ न डालें। उसे यह एहसास दिलाएं कि वह खुद भी एक बच्चा है, माता-पिता नहीं।