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इतिहास के पन्नों से कैसे बनी बनारसी सिल्क साड़ी भारत की शान?

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 31 Jul, 2025 02:15 PM
इतिहास के पन्नों से कैसे बनी बनारसी सिल्क साड़ी भारत की शान?

नारी डेस्क: बनारस का नाम सिर्फ उसके प्रसिद्ध मंदिरों और घाटों के लिए ही नहीं, बल्कि यहां की बनारसी सिल्क साड़ियों के लिए भी पूरी दुनिया में जाना जाता है। यह साड़ियां अपनी चमक, खूबसूरती और बुनावट के कारण खास जगह बना चुकी हैं। शादी, त्योहार या किसी खास मौके पर महिलाएं इसे पहनना पसंद करती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बनारसी सिल्क साड़ी का इतिहास अकबर और फारसी कारीगरों से जुड़ा हुआ है? चलिए आसान भाषा में इसकी पूरी कहानी जानते हैं।

बनारसी साड़ी की शुरुआत कब हुई?

बनारसी सिल्क साड़ी की शुरुआत 14वीं शताब्दी से भी पहले मानी जाती है। उस वक्त गुजरात के कुछ कारीगर बनारस आए थे। ये कारीगर अपनी खास बुनाई तकनीक और नए डिजाइन लेकर आए। उन्होंने अपनी कला को बनारसी साड़ियों में जोड़ा और इस तरह बनारसी सिल्क साड़ियों की परंपरा शुरू हुई। तब से आज तक ये साड़ियाँ बनारस की पहचान बनी हुई हैं।

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फारसी कारीगरों का क्या योगदान है?

मुगल काल में फारसी कारीगरों को बनारस बुलाया गया था। ये कारीगर भारतीय कला के साथ अपनी फारसी तकनीक को मिलाकर नई डिजाइन बनाते थे। इसी वजह से बनारसी साड़ियों में आज भी फारसी डिजाइनों की झलक देखी जा सकती है। इस तरह फारसी कारीगरों ने बनारसी सिल्क साड़ियों को खास और बेहतरीन बनाया।

अकबर ने दिया बड़ा समर्थन

मुगल बादशाह अकबर ने बनारसी सिल्क साड़ियों को बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में कई कारीगर बनारस में आकर बसे और भारतीय तथा फारसी कला का मेल किया। इसी समय शॉल और कारपेट बनाने की परंपरा भी फैली, जो अब बनारस की शान बन गई है।

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साड़ी की खासियत: सोने-चांदी के धागे

बनारसी साड़ी को खास बनाने वाली सबसे बड़ी वजह उसमें इस्तेमाल होने वाले जरी धागे हैं। ये धागे सोने और चांदी के होते हैं, जिनसे साड़ी में बारीक और खूबसूरत डिजाइन्स बनाए जाते हैं, जैसे बेल, फूल और जाल। इतनी नज़ाकत और मेहनत के कारण एक साड़ी तैयार होने में कई महीने लग जाते हैं।

बनारसी साड़ी की कीमत

2009 में बनारसी साड़ियों को GI टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) मिला है, जो इसकी गुणवत्ता और विशिष्टता की गारंटी है। दुनिया भर में इसकी डिमांड बहुत अधिक है। असली बनारसी साड़ी खरीदने के लिए कम से कम 3-5 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। जितनी मेहनत और बारीकी साड़ी में लगती है, उसकी कीमत भी उतनी ही बढ़ती है। कुछ बनारसी साड़ियाँ लाखों रुपये की भी मिलती हैं।

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महिलाओं की पहली पसंद

बनारसी साड़ी अब सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि एक परंपरा बन चुकी है। खासकर भारतीय दुल्हनों के लिए यह साड़ी बहुत पसंदीदा है। इसके चमकीले रंग और शाही डिजाइन महिलाओं की खूबसूरती को और बढ़ा देते हैं। दिवाली, दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों पर भी बनारसी साड़ी खूब खरीदी और पहनी जाती है।

बनारसी सिल्क साड़ी की खूबसूरती और खासियत उसकी लंबी और समृद्ध परंपरा में छुपी है, जो गुजरात के कारीगरों, फारसी तकनीक और मुगल बादशाह अकबर के संरक्षण से मिली। आज भी यह साड़ी भारत और विदेशों में फैशन और संस्कृति का प्रतीक बनी हुई है।

  

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