19 MARWEDNESDAY2025 11:03:28 PM
Nari

बार-बार पेशाब आना हो सकता है बच्चेदानी में गांठ के संकेत, बिना ऑपरेशन भी इस समस्या का है हल

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 18 Mar, 2025 12:32 PM
बार-बार पेशाब आना हो सकता है बच्चेदानी में गांठ के संकेत, बिना ऑपरेशन भी इस समस्या का है हल

नारी डेस्क: उम्र बढ़ने के साथ- सथ महिलाएं कई तरह की परेशानियाें में घिर जाती हैं, हालांकि वह अकसर छोटी- मोटी तकलीफों को नजरअंदाज कर लेती हैं जो आगे चलकर बड़ी मुसीबत बन जाती है। बहुत सी महिलाओं के यूट्रस यानी बच्चेदानी के अंदर या बाहर गांठें बन जाती हैं जिन्हें ट्यूमर कहते हैं, जिसका समय पर इलाज ना करने पर खतरा बढ़ जाता है। बच्चेदानी में गांठ को मेडिकल भाषा में यूटराइन फाइब्रॉइड (Uterine Fibroids) कहा जाता है। यह महिलाओं में होने वाली एक सामान्य समस्या है, जो आमतौर पर 30-50 वर्ष की उम्र में देखी जाती है। हालांकि, यह कैंसर नहीं होती, लेकिन बड़ी हो जाने पर यह कई दिक्कतें पैदा कर सकती है। चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से। 

PunjabKesari

बच्चेदानी में गांठ होने पर महिलाओं में ये लक्षण नजर आ सकते हैं:  

अनियमित मासिक धर्म: पीरियड्स का समय बदलना या ज्यादा देर तक ब्लीडिंग होना।  
भारी रक्तस्राव:पीरियड्स में ज्यादा मात्रा में रक्त आना या बार-बार ब्लीडिंग होना।  
पेल्विक दर्द: निचले पेट में लगातार दर्द या भारीपन महसूस होना।  
पीठ या टांगों में दर्द: गांठ का दबाव बढ़ने पर पीठ या टांगों में दर्द हो सकता है।  
बार-बार पेशाब आना: फाइब्रॉइड बढ़ने पर ब्लैडर पर दबाव पड़ता है, जिससे पेशाब बार-बार आता है।  
bacchedani main ganth ka ilajबड़ी गांठ होने पर गर्भधारण में समस्या हो सकती है।  
 

यह भी पढ़ें:अनचाही प्रेगनेंसी की टेंशन का परमानेंट इलाज है नसबंदी,


इस उम्र के बाद महिलाओं को होती है ये समस्या 

30 से 50 साल की उम्र की महिलाएं इस समस्या की ज्यादा शिकार होती हैं। 40 के बाद फाइब्रॉइड का जोखिमबढ़ जाता है, क्योंकि इस उम्र में हार्मोनल बदलाव ज्यादा होते हैं।  जिन महिलाओं को जल्दी मासिक धर्म शुरू हो गया हो या जिन्हें बांझपन की समस्या हो, उनमें फाइब्रॉइड का खतरा बढ़ सकता है।  मोटापा, गलत जीवनशैली और तनाव भी इसका कारण बन सकते हैं।  

बच्चेदानी में गांठ होने के कारण

एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का असंतुलन इसका सबसे बड़ा कारण है,  ये हार्मोन गर्भाशय की दीवार को प्रभावित करते हैं, जिससे फाइब्रॉइड बनते हैं।   परिवार में किसी को पहले यह समस्या रही हो, तो अगली पीढ़ी में  यह होने की संभावना रहती है। अनहेल्दी लाइफस्टाइल से भी गांठें बनने का खतरा बढ़ जाता है।  गर्भनिरोधक दवाओं का ज्यादा सेवन भी इस मुसीबत को न्यौता देता है, क्योंकि इससे  हार्मोनल असंतुलन हो सकता है।  

PunjabKesari

बिना ऑपरेशन के फाइब्रॉइड का इलाज संभव है या नहीं?

बिना ऑपरेशन के फाइब्रॉइड का इलाज छोटे फाइब्रॉइड में संभव है, लेकिन बड़े फाइब्रॉइड में सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।  फाइब्रॉइड को छोटा करने के लिए हार्मोनल दवाइयां दी जाती हैं, मासिक धर्म को नियमित करने और ब्लीडिंग कम करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं।  हालांकि अगर समस्या बड़ी है तो एम्बोलाइजेशन थेरेपी की सलाह दी जाती है, जिसमें डॉक्टर फाइब्रॉइड तक खून की सप्लाई रोकने  के लिए इंजेक्शन देते हैं। इससे फाइब्रॉइड सिकुड़ने लगता है। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड थेरेपी की मदद से फाइब्रॉइड को गर्म करके नष्ट किया जाता है।  यह प्रक्रिया दर्द रहित होती है और ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती।  

 कब करानी पड़ती है सर्जरी?  

अगर फाइब्रॉइड बहुत बड़े हो जाएं और दवाइयों से फर्क न पड़े या गर्भधारण में रुकावट डालें।  बार-बार ब्लीडिंग या दर्द होने और मूत्राशय या आंतों पर दबाव डलने पर डॉक्टर लैप्रोस्कोपिक सर्जरी या ओपन सर्जरी करने की सलाह देते हैं।  
 

यह भी पढ़ें:पुरुषों में भी हो रहा है बांझपन


 बच्चेदानी की गांठ से बचने के उपाय:

- मोटापे से फाइब्रॉइड का खतरा बढ़ता है, इसलिए वजन को कंट्रोल में रखें।  
-फाइबर और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें।  
- डॉक्टर की सलाह के बिना हार्मोनल दवाइयां न लें।  
-नियमित एक्सरसाइज करने से हार्मोनल बैलेंस बना रहता है और रक्त संचार भी सही रहता है।  
-योग और मेडिटेशन करने से तनाव कम होता है, जो हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।  

बहुत सी महिलाओं के यूट्रस यानी बच्चेदानी के अंदर या बाहर गांठें बन जाती हैं जिन्हें ट्यूमर कहते हैं, जिसका समय पर इलाज ना करने पर खतरा बढ़ जाता है। यह महिलाओं में होने वाली एक सामान्य समस्या है, जो आमतौर पर 30-50 वर्ष की उम्र में देखी जाती है


आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां जो गांठ को खत्म करने में मदद करती हैं जैसे-अशोक की छाल गर्भाशय को स्वस्थ रखने में मदद करती है।  यह गर्भाशय की सूजन और गांठ को कम करने में प्रभावी है। 1 गिलास पानी में 1 चम्मच अशोक की छाल का चूर्ण डालकर उबालें और दिन में दो बार पिएं। इसके अलावा गुग्गुल में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो फाइब्रॉइड को छोटा करने में मदद करते हैं।  250-500 mg गुग्गुल पाउडर दिन में दो बार लें (डॉक्टर की सलाह के अनुसार) लें।  इसके अलावा त्रिफला चूर्ण में डिटॉक्सिफाइंग गुण होते हैं, जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालकर गांठ को कम करते हैं। रात को सोने से पहले 1 चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें।  

नोट: छोटी गांठें दवाइयों से ठीक हो सकती हैं, लेकिन बड़ी गांठ के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ती है।  अगर लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।  
 

Related News