नारी डेस्क: प्रभा तिवारी, एक नाम जो आज हर जगह गूंज रहा है। 64 साल की उम्र में वेटलिफ्टिंग में गोल्ड मेडल जीतने वाली यह महिला न केवल एक गोल्ड मेडलिस्ट हैं, बल्कि एक प्रेरणा भी हैं। उनका सफर घुटनों के दर्द से शुरू होकर वेटलिफ्टिंग के शीर्ष तक पहुंचा है, जो हमें यह सिखाता है कि उम्र केवल एक संख्या है।
उम्र नहीं, जज्बा मायने रखता है
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर अक्सर जवाब देने लगता है। प्रभा तिवारी ने 60 की उम्र में घुटनों के दर्द के साथ संघर्ष किया, लेकिन उन्होंने इसे अपने सपनों के बीच नहीं आने दिया। एक हाउस वाइफ होने के बावजूद, उन्होंने अपने जुनून को कभी कमज़ोर नहीं होने दिया। उन्होंने अपने लिए हाफ पैंट पहनी और यह साबित कर दिया कि उम्र मायने नहीं रखती।
शुरुआती मुश्किलें और प्रेरणा
प्रभा ने अपने शुरुआती दिनों में कई चुनौतियों का सामना किया। रिश्तेदारों के ताने और समाज के सवालों का सामना करना पड़ा। डॉक्टर ने भी उन्हें कहा कि घुटनों का दर्द उनके साथ रहेगा। लेकिन उनकी बेटी मनीषा ने उन्हें प्रोत्साहित किया और जिम जाने का सुझाव दिया। इस प्रोत्साहन ने प्रभा को नए जीवन की ओर बढ़ने का मौका दिया।
जिमिंग से शुरू हुआ नया सफर
जिम जाने के बाद, प्रभा ने अपने शरीर में बदलाव महसूस किया। उनका दर्द कम हुआ और स्वास्थ्य बेहतर हुआ। उन्होंने न केवल वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिताओं में भाग लिया, बल्कि उन्होंने अपने जीवन में नई गतिविधियां भी शामिल कीं, जैसे कार चलाना और तैराकी। उनकी यह यात्रा न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक रूप से भी उन्हें सशक्त बनाती है।
गोल्ड मेडल की प्राप्ति
वेटलिफ्टिंग में गोल्ड मेडल जीतना उनके लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। यह उनके लिए केवल एक पुरस्कार नहीं था, बल्कि यह उनके संघर्ष, मेहनत और धैर्य का प्रतीक था। प्रभा तिवारी का कहना है, "अगर आप खुद को बूढ़ा मान लेंगे, तो जीते जी मर जाएंगे। अपने कमियों पर काबू पाएं और जीवन में आगे बढ़ें।"
प्रभा तिवारी की कहानी यह सिखाती है कि जीवन में मुश्किलें और दर्द केवल अस्थायी होते हैं। जब आपके पास अपने सपनों को साकार करने का जज्बा हो, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। उनकी यह प्रेरणादायक यात्रा न केवल वृद्धावस्था के खिलाफ एक चुनौती है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाती है कि हर उम्र में कुछ नया करने का मौका होता है। प्रभा तिवारी गोल्ड मेडलिस्ट की कहानी हर किसी को प्रेरित करेगी।