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बच्चे के IQ पर असर डाल रहा Smartphone: रिसर्च

  • Edited By Anu Malhotra,
  • Updated: 17 Jul, 2021 03:35 PM
बच्चे के IQ पर असर डाल रहा Smartphone: रिसर्च

कोरोना काल में लगाए लाॅकडाउन से जहां माहामारी को रोकने का प्रयास किया गया वहीं इस लाॅकडाउन में कई और नई समस्याएं भी पैदा हुई जैसे कि देश में बेरोजगारी का बढ़ना, बच्चों के स्कूल न जाने से उनकी शिक्षा का प्रभावित होना इसके अलावा लोग घरों में बंद होने से तनाव और स्ट्रेस जैसी गंभीर बीमारियों की भी चपेट में आ गए, इतना ही नहीं बच्चें भी सेहत से संबंधी कई तरह की परेशानियों  से जुझ रहे हैं। 

बच्चों में तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल आदत में हुई तब्दील
बतां दें कि लाॅकडाउन लगाए जाने की वजह से स्कूल न जा पाने से बच्चे पहले के मुताबिक अधिक स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे उनमें  तकनीकी उपकरणों  (technical equipment) के  इस्तेमाल की आदत एक लत में तब्दील होती जा रही हैं। हालिया अध्ययन में दावा किया गया है कि इससे बच्चों का आईक्यू स्तर प्रभावित हो रहा है। इसके साथ ही निष्कर्षों में पाया गया है कि समय से पैदा हुए बच्चों के लिए यह अधिक नुकसानदेह साबित हो सकता है। इससे बच्चों की याददाशत पर असर होने की संभावना व्यक्त की गई है। 

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 दिन में 2 घंटे से अधिक मोबाइल चलाने से बच्चों में आईक्यू स्तर हो रहा है कम 
अध्ययन की मानें तो 6 और 7 साल की आयु के वे बच्चे जो गर्भावस्था के 28 वें सप्ताहसे   पहले  पैदा हुए बच्चों पर दिन में 2 घंटे से अधिक समय मोबाइल या लैपटाॅप की स्क्रीन पर बिताते हैं तो उनका आईक्यू स्तर कम हो सकता है। साथ ही उनमें आवेग नियंत्रण, ध्यान और समस्या समाधान कौशल में कमी होने की संभावना अधिक होती है।

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फोकस नही कर पा रहे बच्चें
यह अध्ययन राष्ट्रीय स्वास्थय संस्थान द्वारा वित्त पोषित है। अध्ययनके दौरान पाया गया कि जिन बच्चों के बेडरूम में टेलीविजन या कंप्यूटर था, उनमें ध्यान केंद्रितकरने में समस्या की संभावना ज्यादा थी। शोधकर्ताओं बेट्टी आर वोहरा ने कहा कि निष्कर्ष  बताते हैं कि वअधिक समय तक स्क्रीन टाइम, सामन्य और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की याददाशत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। और यह ऐसे बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं। 

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बच्चों के कमरे में टीवी-कंप्यूटर रखना ठीक नहीं
अध्ययन एनआईएच के युनिस कैनेडी श्राइवर नेशनल इंस्टीट्यूट आफ चाइल्ड हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट, नेशनल हर्ट, लंग ऐंड ब्लड इंस्टीट्यूट और नेशनल सेंटर फाॅर एडवांस ट्रांसलेशनल साइंसेज ने कराया। शोधकर्ताओं ने कहा कि निष्कर्ष के आधार पर चिकित्सकों को समय पूर्व जनम लेने वाले बच्चों और उनके परिवारों के साथ स्क्रीन समय के संभावित प्रभावों पर चर्चा करने की आवश्यकता है। 

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स्मार्टफोन के अधिक इस्तेमाल से बच्चों में दिखा ये अंतर
पूर्व अध्ययनों में व्यवाहारिक और अन्य समस्याओं को पूर्णकालिक रूप से जन्म लेने वाले बच्चों के बीच अत्याधिक स्क्रीन टाइम से जोड़ा गया था। वहीं अब 28 सप्ताह या उससे पहले पैदा बच्चों के आंकड़ों का भी विशलेषण किया।  414 बच्चों में से 238 बच्चे ऐसे थे जिनका प्रतिदिन स्क्रीन समय 2 घंटे से अधिक था और 266 बच्चे ऐसे थे , जिनके बेडरूम में टीवी या कंप्यूटर था। प्रतिदिन कम स्क्रीन समय वाले बच्चों की तुलना से रोजाना स्क्रीन पर अधिक समय बिताने वाले बच्चों से की गई। अधिक वक्त बिताने वाले बच्चों ने वैश्विक कार्यकारी फंक्शन पर्सेटाइल स्कोर में लघभग आठ अंको की औसत कमी हासिल की। आयोग नियत्रंण पर लगभग 0.8 अंक कम रहे और असावधानी पर तीन अंक अधिक रहे। 


 

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