
नारी डेस्क: भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराम के परम भक्त संत रविदास जी का जीवन हमारे समाज के लिए बेहद प्रेरणादायक है। वे एक ऐसे भक्त थे जो जात-पात से ऊपर उठकर मानवीयता की शिक्षा देते थे।
15वीं शताब्दी मे वाराणसी में जन्मे महान संत श्रीकृष्ण की परमभक्त मीराबाई के भी गुरू थे। उनके समय में मुगलों का राज था और देश में जातीय भेदभाव चरम सीमा पर था। इस महान संत ने अपने पदों और दोहों से लोगों को मानवता की सीख देते हुए जात-पात से ऊपर उठकर प्रभु भक्ति का पाठ पढ़ाया। उन्हें लोग रैदास के नाम से भी जानते हैं।

उनके भाव उनके दोहों में स्पष्ट पढ़े जा सकते हैं। वे कहते हैं कि रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कू नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच रविदास जी कहते हैं कि इन्सान जन्म से नीच नहीं होता है उसे नीच उसके नीच कर्म बनाते हैं। अर्थात हमें अपने कर्म संवारने पर जोर देना चाहिए अच्छे कर्मों के कारण हमारा जन्म अपने आप सफल हो जाता है।
ऐसे महान संतों के देश में भी हम लोग जातीय पक्षपात के जंजाल में से निकल ही नहीं पा रहे हैं और इन्हीं कारणों के कारण अपने समाज और देश को बाँटने में तुले हैं। इन महान संतों के केवल जन्म दिन मनाने से हम उनकी तरफ अपनी श्रद्धा भेंट नहीं कर सकते इसके लिए हमें उनकी शिक्षाओं पर भी गौर करना होगा। यही हमारी उनके प्रति सच्ची भक्ति और सम्मान होगा।

लेखिका- चारू नागपाल