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दहेज की बलि चढ़ी निक्की,  अपनी लाडली को कमजोर नहीं मजबूत बनाकर ससुराल भेजें मां-बाप

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 25 Aug, 2025 07:12 PM
दहेज की बलि चढ़ी निक्की,  अपनी लाडली को कमजोर नहीं मजबूत बनाकर ससुराल भेजें मां-बाप

नारी डेस्क: शादी केवल एक नया रिश्ता ही नहीं, बल्कि लड़की की पूरी ज़िंदगी का नया अध्याय होता है। ऐसे में माता–पिता का यह कर्तव्य है कि वह अपनी बेटी को केवल अच्छे संस्कार ही न दें, बल्कि उसे इतना मज़बूत भी बनाएं कि वह ससुराल में किसी भी स्थिति का सामना आत्मविश्वास के साथ कर सके। ताकि नोएडा कांड की तरह किसी और निक्की को आग में ना जलना पड़े। 


आत्मनिर्भरता का पाठ

बेटी को शिक्षा और हुनर दें, ताकि वह कभी भी आर्थिक या मानसिक रूप से दूसरों पर निर्भर न रहे। उसे सिखाएं कि नौकरी या काम सिर्फ पैसों के लिए नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और आत्मविश्वास के लिए भी ज़रूरी है। बेटी को यह श्रान दें कि वह कभी भी अपनी इज़्ज़त और आत्म-सम्मान से समझौता न करे। यदि कोई उसे अपमानित करता है, तो वह चुपचाप सहने के बजाय आवाज उठाएं।


संवाद और समझदारी

हर परिस्थिति में धैर्य रखना, लेकिन अन्याय सहना नहीं—यह फर्क उसे समझाना चाहिए। सही और गलत के बीच अंतर पहचानने की शक्ति दें। कानूनी और सामाजिक अधिकारों की जानकारी दें। बेटी को यह ज्ञान दें कि वह अपने कानूनी अधिकार और महिला सुरक्षा कानून जानती हो। ताकि यदि कभी ससुराल में प्रताड़ना हो, तो वह सही कदम उठा सके।


मानसिक और भावनात्मक मजबूती

जीवन में कठिनाइयां आ सकती हैं, लेकिन उनसे भागना नहीं, डटकर सामना करना है। उसे सिखाएं कि उसका आत्मबल सबसे बड़ा सहारा है। हर बेटी को यह श्रान देना चाहिए कि वह गलत चीज़ को “ना” कह सके। चाहे वह दहेज की मांग हो, अन्याय हो या फिर किसी भी तरह का दबाव।


ससुराल को घर समझने का संस्कार, लेकिन आत्मसम्मान के साथ

बेटी को सिखाएं कि वह रिश्तों को निभाए, लेकिन खुद को मिटाकर नहीं। त्याग और सहनशीलता अच्छी बातें हैं, परंतु अपने अस्तित्व और हक़ की कीमत पर नहीं। माता–पिता का सबसे बड़ा दायित्व है कि बेटी को इतना मज़बूत और जागरूक बनाएं कि वह शादी के बाद ससुराल की परिस्थितियों में भी खुद को सुरक्षित, सम्मानित और आत्मनिर्भर महसूस करे।
 

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