नारी डेस्क: नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा है, जिसका खास महत्व होता है। हममें से कई लोग यह नहीं जानते कि देवी दुर्गा की पूजा में कलश क्यों स्थापित किया जाता है। इसके पीछे एक गहरी मान्यता है, जो हमारे पुराणों में पाई जाती है। इसे भगवान विष्णु का रूप माना गया है, इसलिए देवी की पूजा से पहले कलश की पूजा की जाती है।
कलश स्थापना का तरीका
कलश को स्थापित करने से पहले पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। फिर उस स्थान पर देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है। कलश को पांच प्रकार के पत्तों से सजाया जाता है, जिसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा और अन्य सामग्री रखी जाती है। कलश के नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है, जिसमें जौ बोए जाते हैं। जौ बोने की परंपरा देवी अन्नपूर्णा को प्रसन्न करने के लिए की जाती है, ताकि घर में धन-धान्य की प्राप्ति हो।

पूजा का विधि
मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित की जाती है और उन्हें सजाया जाता है। मां का श्रृंगार रोली, चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण, और सुहाग सामग्री से किया जाता है। पूजा स्थल पर एक अखंड दीप जलाया जाता है, जो पूरे नौ दिनों तक जलता रहता है। कलश स्थापना के बाद गणेश जी और मां दुर्गा की आरती की जाती है और फिर नवरात्रि का व्रत शुरू होता है।
उपवास और कन्या पूजन
नवरात्रि के दौरान बहुत से लोग श्रद्धा से उपवास रखते हैं। नवमी के दिन, नौ कन्याओं को, जिन्हें मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के रूप में पूजा जाता है, भोजन कराया जाता है और उन्हें दक्षिणा दी जाती है। इसके बाद उपवास खोला जाता है।
गुप्त नवरात्रि
इसके अलावा, गुप्त नवरात्रि भी होती है, जो आषाढ़ और माघ माह के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। यह नवरात्रि तंत्र साधना, वशीकरण और अन्य तांत्रिक क्रियाओं से जुड़ी होती है, और इसका विशेष महत्व तांत्रिकों के बीच है।

कलश स्थापना के धार्मिक और सांस्कृतिक अर्थ
कलश को विश्व ब्रह्मांड, विराट ब्रह्म, और पृथ्वी का प्रतीक माना जाता है। इसमें सभी देवता, तीर्थ, और शक्तियां समाई हुई होती हैं। वेदों के अनुसार, कलश के मुख में भगवान विष्णु का वास होता है, उसके कंठ में रुद्र और मूल में ब्रह्मा का निवास होता है। कलश में सभी मातृशक्तियां और देवताएं भी निवास करती हैं, और इसकी पूजा से सभी देव शक्तियां प्रसन्न होकर यज्ञ कर्म को सफलता से पूरा करने में मदद करती हैं।
कलश की शांति और पवित्रता का महत्व
कलश में पवित्र जल भरा होता है, जो यह संकेत देता है कि हमारा मन भी जल की तरह शीतल, स्वच्छ और निर्मल रहे। हमें अपने शरीर और आत्मा को श्रद्धा, संवेदना और सरलता से भरपूर रखना चाहिए। इस पूजा के जरिए, हम अपनी नकारात्मक भावनाओं को शांत करते हैं और दिव्य ज्ञान को धारण करते हैं।

नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन में शांति, समृद्धि और मानसिक शुद्धता को लाने का एक उपाय भी है। इस दिन को लेकर कई गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक अर्थ जुड़े हुए हैं, जो हमें जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करते हैं।