कोरोना वायरस का अब एक और लक्षण सामने आया है जिसका नाम है 'हैप्पी हाइपोक्सिया'। यह कोरोना की सबसे खतरनाक स्टेजों में से एक है, जो हार्ट अटैक जैसा झटका देती है। इसके कारण मरीजों की जान जाने का खतरा भी रहता है। 'साइलेंट किलर' इस बीमारी के लक्षण भी नहीं दिखते, जिससे जान का जोखिम और भी बढ़ जाता है।
हाइपोक्सिया और हाइपोक्सिमिया (लो ब्लड ऑक्सीजन)
हाइपोक्सिया एक ऐसी स्थिति है, जिसके कारण शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जबकि हाइपोक्सिमिया के कारण धमनी में ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती। सामान्य रोगी के हाइपोक्सिमिया में रक्त ऑक्सीजन का स्तर लगभग 92% या उससे कम होता है जबकि कोरोना में इसका लेवल 30 से 50 से भी कम हो जाता है।
युवाओं को अधिक खतरा
वैज्ञानिकों के मुताबिक, युवाओं की इम्यूनिटी बहुत मजबूत होती इसलिए जब उनका ऑक्सीजन सेचुरेशन कम होता है तो उन्हें पता नहीं चलता। यही वजह है कि युवा साइलेंट किलर हाइपोक्सिया की चपेट में अधिक आ चुके हैं।
कितना ऑक्सीजन लेवल होता है सामान्य?
आमतौर पर खून में 94-95 से 100% ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल होना चाहिए। इससे कम ऑक्सीजन की मात्रा फेफड़ों में होने वाली परेशानी का इशारा हो सकता है। 90% से कम ऑक्सीजन लेवल को अलर्मिग साइन माना जाता है।
हाइपोक्सिया के लक्षण
. होठों का रंग लाल व नीले पड़ना
. त्वचा का रंग भी लाल या पर्पल दिखना
. अधिक पसीना आना
. सांस लेने में दिक्कत
. स्वभाव में चिड़चिड़ापन
. दिल की धड़कन बढ़ना
'सही समय पर' हैप्पी हाइपोक्सिया का कैसे लगाएं पता?
कोरोना मरीजों को लगातार ऑक्सीजन लेवल मॉनिटरिंग करने की सलाह दी जा रही है, ताकि इसका समय रहते पता लगाया जा सके। इसके लिए आप पल्स ऑक्सीमीटर की मदद ले सकते हैं।
ऑक्सीजन थेरेपी की कब होती है जरूरत?
ऑक्सीजन लेवल 93% से नीचे होने पर आपको ऑक्सीजन थेरेपी होती है जबकि ऑक्सीजन सेचुरेशन 95 से ऊपर हो तो इसकी जरूरत नहीं। वहीं, पल्स रेट 90 से भी कम है तो बिना देरी डॉक्टर से संपर्क करें।