26 जनवरी यानि गणतंत्र दिवस के दिन भारत सरकार ने सर्वोच्च नागिरक पद्म पुरस्कार की सूची जारी की थी। इस लिस्ट में 29 महिलाएं भी शामिल हैं, जिसमें से 2 महिलाओं को पद्मभूषण और 27 महिलाओं को पद्मश्री सम्मान से राष्ट्रपति द्वारा सम्मान दिया जाएगा। इसमें एक नाम ऐसा भी है जो एक समय पर अपने पति से छिप छिप कर रचनाएं लिखती थीं लेकिन कड़ी मेहनत और लग्न से आज उन्हें वो पद्मश्री का सम्मान मिलेगा जिसे पाने के लिए हर एक नागरिक के मन में सपना होता है। दरअसल हम बात कर रहे हैं आगरा की रहने वाली डॉ उषा यादव की। तो चलिए आज हम आपको उनकी जिंदगी के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं।
कौन है ऊषा यादव?
डॉ. ऊषा यादव उत्तर प्रदेश के आगरा की रहने वाली हैं। साहित्यकार के क्षेत्र में नाम कमाने वाली ऊषा को जब इस बात की जानकारी मिली कि उन्हें पद्मश्री मिलेगा तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे। बचपन से ही साहित्य कला और लेखनी में आगे रहने वाली ऊषा अपने नाम कईं उपलब्धियां कर चुकी हैं।
9 साल की उम्र में कविताएं लिखना शुरू किया
कहते हैं न कि फल रातों रात नहीं उगता है उसी तरीके से सफलता आपको रातो रात नहीं मिल जाती है इसके लिए आपको कठिन मेहनत करनी पड़ती है दिन -रात जागना पड़ता है और फिर जाकर आपको सफलता मिलती है। ऊषा यादव भी उन्हीं में से एक हैं जिन्होंने सफलता पाने के लिए लंबी साधना की और फिर जाकर उन्हें उनकी मेहनत का फल मिला है। मीडिया रिपोर्टस की मानें तो ऊषा यादव जब 9 साल की थीं तब से ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था और उनकी कविताएं पत्रिका में प्रकाशित भी हुईं थीं।
जज बनाना चाहते थे पिता लेकिन...
डॉ ऊषा का बचपन साहित्य के वातावरण में ही बीता है। उनके पिता चंद्रपाल सिंह मयंक बाल साहित्यकार थे और वह अधिवक्ता भी रह चुके हैं। डॉ. ऊषा के पिता न्यायिक क्षेत्र से जुड़े थे जिसके कारण वह ऊषा को जज बनाना चाहते थे लेकिन उनकी रुचि हमेशा से शिक्षण और लेखन में रही।
30 साल तक अध्यापन से जुड़ी रहीं ऊषा
डॉ ऊषा यागव ने 12 साल की उम्र में ही हाई स्कूल को पास कर लिया था। शादी हो गई लेकिन शादी के बाद भी वह पढ़ती रहीं। बचपन से ही ऊषा को पढ़ाई में काफी रूचि थी। शादी के बाद भी वह कानपुर में पढ़ाती रहीं और इसके बाद वह आगरा आईं और 30 साल तक अध्यापन से जुड़ी रहीं। उन्होंने बतौर प्रोफेसर के रूप में भी काम किया।
लिख चुकी हैं 100 से अधिक पुस्तकें
ऊषा यादव की मानें तो वह अब तक 100 पुस्तकें लिख चुकी हैं और उनकी लेखनी और कहानियां महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के ऊपर होते हैं। ऊषा यादव की सोच भी काफी अलग है। उनका मानना है कि अगर एक बच्चा बड़े परिवार से है तो उसके पास सब कुछ होता है लेकिन उसके पास माता पिता नहीं होते हैं और वह उदास और अकेला से रहता है उसी प्रकार महिलाओं और बेटियों में भी एक डर और असुरक्षा का भाव बढ़ता जा रहा है जिसके कारण वह बाहर निकलने से संकोच करती हैं।
नाम कर चुकीं है ये उपलब्धियां
1. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से डॉ ऊषा यादव को बाल साहित्य भारती पुरस्कार मिल चुका है
2. भोपाल में बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र की ओर से किया गया सम्मानित
3. इलाहाबाद में मीरा फाउंडेशन की ओर से मीरा स्मृति सम्मान मिल चुका है
4. यूपी सरकार से बाल साहित्य भारती
5. भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार सहित 10 से अधिक पुरस्कार मिल चुके हैं
पति से छिप छिप कर लिखती थीं ऊषा
वहीं डॉ ऊषा यादव की मानें तो जब वह शादी करके आगरा आईं थी तो पति से छिप-छिप कर लिखती हैं और फिर अपनी रचनाओं को जला देती थीं। इसका कारण था कि उनके मन में डर था कि उनते पति उनसे पता नहीं क्या कहेंगे लेकिन एक दिन उनके पति ने ऊषा द्वारा लिखी उनकी रचनाएं देख लीं जिसके बाद उन्होंने ऊषा को रोकने की बजाए उन्हें आगे बढ़ने के लिए कहा और उन्हें भविष्य के लिए प्रेरित किया। इसके बाद ऊषा ने अपनी कलम से ऐसा जादू चलाया कि अब उन्हें पद्मश्री मिलने जा रहा है।
शॉर्ट कट से दूर रहने को कहती हैं ऊषा
ऊषा की मानें तो उनसे कईं वरिष्ठ साहित्यकार पूछते हैं कि वह इतना अच्छा कैसे लिख लेती हैं लेकिन इस पर डॉ ऊषा यही कहती हैं कि इसके लिए कोई शॉर्ट कट नहीं है। आप खूब पढ़िए और लिखिए और जो होना है अपने आप हो जाएगा।
सच में सफलता पाने के लिए आप किसी शॉर्ट कट की नहीं बल्कि डटकर काम करते रहें और लगातार मेहनत करने वालों को हमेशा सफलता मिलती है।