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मौत के 12 से 24 घंटे बाद कोरोना नाक, मुंह में एक्टिव नहीं रहता: एम्स के फोरेंसिक

  • Edited By Anu Malhotra,
  • Updated: 25 May, 2021 08:02 PM
मौत के 12 से 24 घंटे बाद कोरोना नाक, मुंह में एक्टिव नहीं रहता: एम्स के फोरेंसिक

कोरोना वायरस को लेकर हर दिन नई-नई जानकारी सामने आ रही हैं इसी बीच एक और बड़ी खबर सामने आई हैं। दरअसल, एम्स के फोरेंसिक प्रमुख का कहना है कि मरीज की मौत के 12 से 24 घंटे बाद भी कोरोना नाक, मुंह में एक्टिव नहीं रहता है। 
 

व्यक्ति की मौत के 12 से 24 घंटे बाद कोरोना वायरस एक्टिव नहीं रहता- 
जी हां,अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में फोरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता का कहना है कि एक संक्रमित व्यक्ति की मौत के 12 से 24 घंटे बाद कोरोना वायरस नाक और मुंह की गुहाओं (नेजल एवं ओरल कैविटी) में सक्रिय नहीं रहता, जिसके कारण मृतक से संक्रमण का खतरा अधिक नहीं होता है।
 

Breakthrough finding' reveals why certain Covid-19 patients die

 

100 शवों की कोरोना वायरस संक्रमण जांच से हुए खुलासा- 
 डॉ. गुप्ता ने बताया कि मौत के बाद 12 से 24 घंटे के अंतराल में लगभग 100 शवों की कोरोना वायरस संक्रमण के लिए फिर से जांच की गई थी, जिनकी रिपोर्ट नकारात्मक आई। मौत के 24 घंटे बाद वायरस नाक और मुंह की गुहाओं में सक्रिय नहीं रहता है।
 

मृतक का नाक और मुंह की गुहाओं को फौरन बंद कर देना चाहिए-
उन्होंने बाताया कि पिछले एक साल में एम्स में फोरेंसिक मेडिसिन विभाग में ‘कोविड-19 पॉजिटिव मेडिको-लीगल’ मामलों पर एक अध्ययन किया गया था। इन मामलों में पोस्टमॉर्टम किया गया था।उन्होंने कहा कि सुरक्षा की दृष्टि से पार्थिव शरीर से तरल पदार्थ को बाहर आने से रोकने के लिए नाक और मुंह की गुहाओं को बंद किया जाना चाहिए।
 

मृतक की अस्थियों से संक्रमण का खतरा नहीं-
उन्होंने कहा कि एहतियात के तौर पर ऐसे शवों को संभालने वाले लोगों को मास्क, दस्ताने और पीपीई किट जरूर पहननी चाहिए। डॉ. गुप्ता ने कहा कि अस्थियों और राख का संग्रह पूरी तरह से सुरक्षित है, क्योंकि अस्थियों से संक्रमण के फैलने का कोई खतरा नहीं है।
 

The dead bodies of 72 infected persons were also given ashes to their  relatives. | 72 संक्रमितों के शवों को मुखाग्नि उनकी अस्थियां भी परिजनों को  दी - Dainik Bhaskar

 

पोस्टमार्टम के लिए तकनीक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए-
आपकों बतां दें कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने मई 2020 में जारी ‘कोविड-19 से हुई मौत के मामलों में मेडिको-लीगल ऑटोप्सी के लिए मानक दिशानिर्देशों’ में सलाह दी थी कि कोविड-19 से मौत के मामलों में फोरेंसिक पोस्टमार्टम के लिए चीर-फाड़ करने वाली तकनीक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे मुर्दाघर के कर्मचारियों के अत्यधिक एहतियात बरतने के बावजूद, मृतक के शरीर में मौजूद द्रव और किसी तरह के स्राव के संपर्क में आने से इस जानलेवा रोग की चपेट में आने का खतरा हो सकता है।
 

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