नारी डेस्क: हिंदू धर्म में भगवान शिव को देवताओं का भी देवता, यानी "महादेव" कहा जाता है। उनकी पूजा और स्तुति सभी देवता करते हैं। त्रिमूर्ति में शामिल भगवान शिव को संहारक और सृष्टि के परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है। उनके जीवन से जुड़ी कई कथाएं धर्मग्रंथों में मिलती हैं, जिनमें से एक उनकी पहली पत्नी देवी सती के साथ विवाह की है। आइए सरल भाषा में जानते हैं, भगवान शिव और देवी सती के विवाह की पूरी कथा और उनके ससुराल कनखल से जुड़ी रोचक बातें।
कैसे हुआ भगवान शिव और सती का विवाह?
शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव का पहला विवाह आदिशक्ति देवी सती के साथ हुआ था। देवी सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। दक्ष को भगवान शिव का रहन-सहन और उनका साधु-स्वभाव पसंद नहीं था। जब देवी सती के विवाह का समय आया, तो दक्ष ने ब्रह्मा जी से परामर्श किया। ब्रह्मा जी ने बताया कि सती स्वयं आदिशक्ति हैं और शिव आदिपुरुष। इस नाते सती का विवाह केवल शिव से ही उचित होगा। लेकिन दक्ष, शिव से नाखुश थे, इसलिए उन्होंने सती के स्वयंवर में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। इधर, सती ने मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था। स्वयंवर के दिन सती ने भगवान शिव की कल्पना करते हुए वरमाला पृथ्वी पर डाल दी। तभी महादेव वहां प्रकट हुए और सती द्वारा डाली गई माला को पहन लिया। भगवान ब्रह्मा और विष्णु के समझाने पर दक्ष को यह विवाह स्वीकार करना पड़ा, लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं थे।
भगवान शिव का ससुराल: कनखल
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने हरिद्वार के पास स्थित कनखल को अपनी राजधानी बनाया था। देवी सती का स्वयंवर यहीं हुआ था। यही कारण है कि कनखल को भगवान शिव का ससुराल कहा जाता है। कनखल में स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर वह स्थान माना जाता है, जहां भगवान शिव और देवी सती का विवाह संपन्न हुआ था। हर साल सावन के महीने में भगवान शिव को विशेष रूप से कनखल में पूजित किया जाता है। मान्यता है कि महादेव इस महीने में अपने ससुराल निवास करते हैं। इस दौरान दक्षेश्वर महादेव मंदिर में शिवजी की "दामाद" के रूप में सेवा की जाती है।
कनखल में सती का बलिदान
पौराणिक कथा के अनुसार, कनखल में ही राजा दक्ष ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। लेकिन सती, अपने पिता के यज्ञ में बिना बुलाए ही पहुंच गईं जब सती यज्ञ स्थल पर पहुंचीं, तो दक्ष ने भगवान शिव के प्रति अपमानजनक बातें कहीं। यह सुनकर सती ने अपने पति का अपमान सहन नहीं किया और यज्ञ कुंड की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। मान्यता है कि जिस स्थान पर यह घटना हुई थी, वहां आज भी वह यज्ञ कुंड मौजूद है। इसे दक्षेश्वर महादेव मंदिर में देखा जा सकता है।
परंपरा आज भी जीवित है
हर साल सावन के महीने में दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस दौरान शिवजी की "ससुराल" में आने की परंपरा आज भी पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ निभाई जाती है।कनखल न केवल भगवान शिव और देवी सती की विवाह भूमि है, बल्कि यह उनके त्याग और समर्पण की अनोखी कहानी भी कहता है।