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नवयुवतियां भी प्रथम मासिक धर्म के पहले या बाद में हो सकती हैं इसकी शिकार

  • Updated: 19 Mar, 2015 04:16 PM
नवयुवतियां भी प्रथम मासिक धर्म के पहले या बाद में हो सकती हैं इसकी शिकार

कहीं आप थोड़ा चलने या थोड़ा-सा व्यायाम करने के बाद पूरी तरह थक तो नहीं जाते तो आप ‘मायस्थीनिया’ रोग से पीड़ित हो सकते हैं । यह पैदाइशी या फिर अत्यधिक शारीरिक परिश्रम या अत्यधिक इन्फैक्शन के कारण होता है । कभी-कभी ज्यादा ठंड या अत्यधिक गर्मी भी इस रोग को पैदा करने के लिए जिम्मेदार हो सकती है । नवयुवतियां भी प्रथम मासिक धर्म के पहले या बाद में इसकी शिकार हो सकती हैं । जबरदस्त उत्तेजना या तनाव के कारण भी यह पनप सकता है, यह किसी को हो सकता है लेकिन महिलाओं में ज्यादा और कम आयु में होता है । इसके मरीजों के खून में एसीटाइल कोलीन रिसैप्टर रासायनिक तत्व की कमी होती है ।

इस तत्व का काम शरीर की मांसपेशियों को क्रियाशील व ऊर्जा से भरपूर बनाए रखना है । इस तत्व की कमी के कारण मांसपेशियां ढीली व सुस्त हो जाती हैं । जिससे मायस्थीनिया के रोगी को हल्का चलने या काम करने से ऐसा लगता है कि जैसे शरीर से प्राण ही निकल गए हों । इसका मुख्य कारण छाती के अंदर एक विशेष ग्रंथि (थाइमस ग्लैंड) का आकार में बड़ा होना होता है जो छाती के अंदर दिल की बाहरी सतह पर होती है । ट्यूमर की वजह से यह आकार में बड़ी हो जाती है । इस रोग के 90 प्रतिशत मरीजों में यह थाइमस ग्रंथि ही जिम्मेदार होती है । बाकी 10 प्रतिशत रोगियों में आटो इम्यून रोग जिम्मेदार होते हैं । 

प्रारंभिक अवस्था में मायस्थीनिया का रोगी बालों में कंघी करने में दिक्कत महसूस करता है । बहुत ही हल्के सामान को उठाने पर भी मायस्थीनिया का रोगी थक कर चूर हो जाता है । सीढिय़ों पर दो-तीन कदम चढऩे पर या साधारण चलने पर या धीमी गति से दौडऩे पर कठिनाई महसूस करने लगता है । जब मायस्थीनिया का रोग बढ़ जाता है तो आंख की पलकें ऊपर की तरफ उठना बंद कर देती हैं । दोनों आंखों को काफी देर तक खुली रखना मुश्किल होता है और आगे चलकर पलकों का गिरना स्थायी हो जाता है । आंखें शराबियों की तरह लगने लगती हैं क्योंकि आंखों का पूरी तरह से बंद होना कठिन होता है । मायस्थीनिया का मरीज किसी विशेष वस्तु पर अपनी दोनों आंखों को केंद्रित करने की क्षमता खो देता है और उसे एक ही वस्तु के दो प्रतिबिंब दिखते हैं । रोगी का चेहरा बिल्कुल भाव-शून्य हो जाता है । होंठ बाहर की तरफ ज्यादा निकल आते हैं ।

मुस्कराने की कोशिश करने पर लगता है जैसे वह गुर्रा रहा हो । निचला जबड़ा भी नीचे की तरफ काफी झुक जाता है । पानी पीते समय पानी रोगी की नाक से निकलना शुरू हो जाता है । खाना खाते समय मरीज को घुटन होने लगती है । मुंह के कोने से लार या पानी गिरने लगता है । मरीज हकलाने लगता है और उसे जोर से बोलने पर कठिनाई का सामना करना पड़ता है । यह जोर से गिनती नहीं कर सकता । उसकी आवाज गिनती गिनने के समय पहले धीमी होगी फिर फुसफुसाहट में बदल जाएगी । इलाज में लापरवाही से खाना खाने व सांस लेने में कठिनाई और बढ़ जाती है और एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि मरीज की जान खतरे में पड़ जाती है इसलिए मायस्थीनिया रोग के शुरूआती दिनों में ही एक स्थायी इलाज की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर देनी चाहिएं । 

एक मायस्थीनिया से पीड़ित मां का नवजात शिशु जन्म से ही इस रोग के लक्षण प्रदर्शित कर सकता है क्योंकि विध्वंसक तत्व ए.सी.आर. एंटीबाडी माता के खून से नवजात शिशु के खून में ट्रांसफर हो जाता है । इससे नवजात शिशु के स्तनपान के दौरान दूध को घुटकने में कठिनाई होने से नवजात शिशु की सांस फूल जाती है और जान पर बन आती है । नवजात शिशु का रोना भी स्वस्थ बच्चे के रोने की तुलना से कम हो जाता है । यह भी अपनी आंखें ठीक से खोल नहीं पाता । स्त्री रोग विशेषज्ञ डाक्टर को चाहिए कि वह मायस्थीनिया रोग से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के इलाज से विशेष सावधानी बरतें । प्रसव के बाद नवजात शिशु में मायस्थीनिया होने की प्रबल संभावना को भी ध्यान में रखें और ऐसी गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी ऐसे अस्पतालों में करवाएं जहां नवजात शिशुओं के लिए विशेष आई.सी.यू. की सुविधा हो और उस अस्पताल में एक अनुभवी नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ (नियोनेटोलोजिस्ट) उपलब्ध हो । 

मायस्थीनिया रोग का सबसे कारगर व सबसे अच्छा इलाज आप्रेशन ही है । इस आप्रेशन में दोषी थाइमस ग्रंथि  को मरीज की छाती से पूर्णत: निकाल दिया जाता है । सर्जरी के चार फायदे होते हैं :
(1) अधिकतर मरीजों में थाइमस ग्रंथि निकाल देने से रोग पूरी तरह ठीक हो जाता है ।
(2) आप्रेशन से मायस्थीनिया से होने वाली मरीज की समस्याओं व कठिनाई को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है जिससे मरीज की मृत्यु की संभावना कम हो जाती है ।
(3) सर्जरी के बाद मायस्थीनिया के लिए दी जाने वाली दवाइयों की संख्या व मात्रा में कमी आ जाती है ।
(4) सबसे महत्वपूर्ण सर्जरी का लाभ यह होता है कि शुरूआती  दिनों में थाइमस ग्रंथि में पनप रहे संभावित ट्यूमर या कैंसर से निजात मिल जाती है क्योंकि संपूर्ण थाइमस ग्रंथि ही निकाल दी जाती है इसलिए यूरोपीय देशों या अमेरिका में मायस्थीनिया के रोग में सर्जरी को प्राथमिकता दी जाती है । अत: मायस्थीनिया के रोग में सर्जरी को ही प्राथमिकता दें । अगर मरीज में अन्य मैडिकल समस्याओं की वजह से सर्जरी होना मुश्किल हो तो दवा से इलाज के अलावा और कोई सस्ता नहीं । 


दवाइयों के अपने नुक्सान
प्रेडनीसोलोन दवा शरीर में नमक और पानी को एकत्रित कर देती है जिससे शरीर और चेहरा सूजा हुआ दिखता है । दवा से इलाज को प्राथमिकता देने से समय और पैसे की बर्बादी तो होती ही है, थाइमस ग्रंथि  में छुपे हुए कैंसर वाले ट्यूमर की शुरूआती दिनों में उपेक्षा हो जाती है जिसकी वजह से मरीज को अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ती है जबकि आप्रेशन एक सुरक्षित व प्रभावी इलाज है ।

अगर आप या आपके परिवार के सदस्य मायस्थीनिया या थाइमस ग्रंथि के ट्यूमर से पीड़ित हैं, तो आप किसी अनुभवी थोरेसिक यानी चैस्ट सर्जन से परामर्श लें और उनसे ही अपनी थाइमस ग्रंथि निकलवाएं । हमेशा ऐसे अस्पतालों में जाएं जहां न्यूरोलॉजी का विकसित व बड़ा महकमा हो और साथ ही प्लाज्माफेरेसिस यानी रक्तशोधन के लिए अत्याधुनिक मशीन की सुविधा हो । अस्पताल में क्रिटिकल केयर का विभाग व आधुनिक आई.सी.यू. हो । वैन्टीलेटर (कृत्रिम सांस यंत्र) क्योंकि आप्रेशन के बाद वैंटीलेटर की जरूरत पड़ सकती है । 

—डा. के.के. पाण्डेय

 

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