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Prerak Prasang

संस्कारित शिक्षा ही समृद्ध समाज का आधार- आरती सोबती

  • Updated: 16 Aug, 2014 12:27 PM
संस्कारित शिक्षा ही समृद्ध समाज का आधार- आरती सोबती

‘‘संस्कार पूर्ण शिक्षा ही समृद्ध समाज का मजबूत स्तम्भ है क्योंकि संस्कार पूर्ण शिक्षा से ही समृद्ध समाज का निर्माण संभव है। शिक्षा का उद्देश्य मात्र पढ़े-लिखों की फौज खड़ी करना नहीं है, बल्कि बच्चों को देश के प्रबुद्ध नागरिक बनाने के साथ-साथ अच्छा इंसान बनाना भी है। स्कूल में बच्चों को मात्र ज्ञान ही नहीं देना चाहिए, बल्कि अपनी संस्कृति व संस्कारों के साथ जोडऩे का भी प्रयत्न करना चाहिए। यही मेरा लक्ष्य है और मैं अपने लक्ष्य में कामयाब भी हुई हूं।’’

यह कहना है श्री हनुमंत इंटरनैशनल पब्लिक स्कूल गोराया की प्रधानाचार्य आरती सोबती का। अध्यापन के 19 वर्षों के अनुभव के आधार पर उन्होंने बताया कि समृद्ध समाज की  परिकल्पना को साकार करने के लिए बच्चों को  उच्च संस्कारों पर आधारित शिक्षा देनी होगी। उनको अपनी जड़ों से जोडऩा होगा और उनमें समाज सेवा की भावना पैदा करनी होगी।

आरती सोबती स्वयं भी अपने जीवन का उद्देश्य समाज सेवा ही मानती हैं। मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली आरती सोबती 1995 से  शिक्षा के क्षेत्र में है। एस.डी. स्कूल फगवाड़ा से स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत बी.एड., एम.कॉम व रामगढिय़ा कालेज फगवाड़ा से एम.एड की शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा के प्रति इतना लगाव था कि अध्यापन को ही अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने का माध्यम बना लिया।

अध्यापन के क्षेत्र में वह 1995 से ही सक्रिय हैं। 1995 से 1999 तक जैन स्कूल फगवाड़ा में बतौर अध्यापक व 1999 से 2014 तक उसी स्कूल में  प्रधानाचार्य के पद की गरिमा बढ़ाई और अभी हाल ही में वह श्री हनुमत इंटरनैशनल पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्य नियुक्त की गई हैं।

पिता जी को मानती हैं आदर्श
 श्रीमती सोबती अपने पिता श्री तिलक राज मल्होत्रा को अपना आदर्श मानती हैं । उनके अनुसार आज वह जिस मुकाम पर हैं उसके पीछे उनके अभिभावकों का आशीर्वाद व घर से मिले अच्छे संस्कार ही हैं। वह कहती हैं कि उनके पिता जी ने पांचों बहनों को बेटों की तरह प्यार दिया और उनकी परवरिश में कोई कमी नहीं रहने दी। बच्चे पर हमेशा घर का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है। बच्चा जो घर पर देखता है सबसे ज्यादा उसे अपनाता है। उनके अनुसार प्रत्येक मां-बाप को चाहिए कि वह कन्या संतान को भी बेटों के समान प्यार दें कि वह कन्या को बोझ न समझे अपना सौभाग्य माने।

परिवार का पूरा सहयोग
श्रीमती आरती सोबती को अपने पति श्री राजीव सोबती तथा अपने समूचे परिवार का पूरा सहयोग प्राप्त है। इतनी व्यस्त दिनचर्या होने के बावजूद वह अपने परिवार व अपने लिए समय जरूर निकालती हैं। उनका कहना है कि पेशेवर महिलाओं को अपने घर-परिवार व अपने आफिस के कार्य में सामंजस्य बना कर चलना चाहिए। अगर दोनों में संतुलन बनाया जाए तो सफलता की राह दूर नहीं।

अध्यापक किताबी ज्ञान के साथ-साथ जिंदगी का ज्ञान भी दें
एक अध्यापिका के नाते वह यही प्रयत्न करती हैं कि छात्रों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ जीवन का ज्ञान भी दिया जाए। उनके अनुसार एक अध्यापक को अपने कर्म का निर्वाह पूरी निष्ठा से करना चाहिए ताकि देश का भविष्य यानी विद्यार्थी सही मार्ग पर चल सकें। वह हमेशा इस बात पर जोर देती हैं कि नारी को हमेशा परिवार की जरूरतों के लिए बाकी कामों को पीछे छोडऩा चाहिए। इसके अलावा अपने बच्चों की बात सुनें व उनसे मैत्रीपूर्वक व्यवहार रखें ताकि बच्चे आपके साथ हमेशा सहज महसूस करें।

शिक्षा ही नारी की असली ताकत
श्रीमती आरती सोबती मानती हैं कि आज की नारी हर क्षेत्र में आगे है। आज की शिक्षित नारी ने हर क्षेत्र में सफलता के परचम लहराए हैं। शिक्षा ही नारी की असली ताकत है। एक शिक्षित नारी परिवारों में शिक्षा का बीज बो सकती है, एक शिक्षित नारी आत्मनिर्भर होकर कर सिर्फ अपना भविष्य संवार सकती है बल्कि अपने परिवार के साथ-साथ एक सभ्य समाज का भी निर्माण कर सकती है। नारी को ऊंचे आदर्श व भारत की गरिमामय संस्कृति अपनाने की जरूरत है ताकि समाज भी सही दिशा में चले व बच्चों में नैतिक संस्कार बने रहें। पुरुष के समान ही नारी भी समाज का मजबूत आधार स्तंभ है इसलिए समाज में फैली सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या व अन्य बुराइयों को हम सब को मिल कर समाज से बाहर निकालना चाहिए। वह भविष्य में महिलाओं के उत्थान व उनकी सुरक्षा को लेकर जागरूक सोच पैदा  करना चाहती हैं  ताकि समाज में नारी सम्मान से जी सके व अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सके।

    -प्रस्तुति : गुलशन छाबड़ा (रोमी)

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