नारी डेस्क : कई माता-पिता थोड़ी-थोड़ी बात पर बच्चों पर चिल्ला देते हैं। दिनभर की थकान, काम का तनाव और बच्चों की शरारतें। इन सब कारणों से कभी-कभी गुस्से में चिल्लाना आम लगता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इससे बच्चों के दिमाग और भावनाओं पर गंभीर असर पड़ सकता है?
चिल्लाने से बच्चों के दिमाग में क्या होता है?
गुस्से में चिल्लाने पर बच्चे का मस्तिष्क डर और तनाव की स्थिति में चला जाता है। उनके शरीर में कॉर्टिसोल नामक तनाव हार्मोन बढ़ जाता है।
लंबे समय तक यह हार्मोन अधिक रहने से बच्चों में चिंता, अवसाद, और सीखने की क्षमता में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

बच्चों में उम्र के हिसाब से असर
छोटे बच्चे: मस्तिष्क अभी विकसित हो रहा होता है। चिल्लाने से वे डर जाते हैं और सीखने की क्षमता कम हो जाती है।
किशोर: लगातार डांट और चिल्लाना उनके आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और सामाजिक व्यवहार को प्रभावित कर सकता है।
चिल्लाने की जगह क्या करें?
संयम बनाएं: गुस्से में तुरंत चिल्लाने की बजाय पहले खुद शांत हों।
सकारात्मक भाषा अपनाएं: बच्चों को डांटने की बजाय समझाएं।
उदाहरण: बच्चा होमवर्क नहीं करता? उसके साथ बैठकर कारण समझें और हल खोजें।
प्रोत्साहन दें: छोटी-छोटी अच्छी आदतों और प्रयासों की सराहना करें। यह बच्चों को आत्मविश्वासी बनाता है।

माता-पिता के लिए टिप्स
तनाव को पहचानें: अगर आप खुद तनाव में हैं, तो गुस्सा नियंत्रित करना मुश्किल होता है।
शांत होने के तरीके अपनाएं: गहरी सांस लें, ध्यान करें, थोड़ी शारीरिक गतिविधि करें या अकेले समय बिताएं।
संवाद बनाएं, आदेश नहीं: बच्चों से बात करें, उन्हें समझाएं और गलती सुधारने का मौका दें।
माता-पिता के बच्चों पर चिल्लाने के नुकसान
बच्चों में डर और असुरक्षा की भावना बढ़ती है।
उनकी सोचने और सीखने की क्षमता प्रभावित होती है।
लंबे समय में भावनात्मक समस्याएं और आत्मविश्वास में कमी आ सकती है।
सामाजिक जीवन और रिश्तों पर भी असर पड़ता है।
सबसे जरूरी बात
डॉक्टर कहती है की बच्चों के लिए प्यार और सुरक्षा की भावना सबसे अहम है। गुस्से में चिल्लाने से वे केवल डर महसूस करते हैं और सीखने की जगह बचने पर ध्यान देते हैं। संयम, समझदारी और प्यार से बच्चों को समझाना उन्हें स्वस्थ, खुशहाल और आत्मविश्वासी बनाता है।