भारत अपनी ऐतिहासिक इमारतों के साथ मंदिरों से भी मशहूर है। वहीं कोरोना की दूसरी लहर के कारण देशभर में लॉकडाउन किया गया था। इसी के साथ मंदिरों को बंद किया गया है। मगर अब परिस्थिति ठीक होने पर धीरे-धीरे जिंदगी सही हो रही है। ऐसे में ओडिशा के पुरी जिले में स्थित भगवान सूर्य का भव्य कोणार्क सूर्य मंदिर भी 2 अगस्त दिन सोमवार को खोल दिया गया है। कोरोना के कारण यह मंदिर पिछले साढ़े तीन महीने कुल 100 दिनों तक बंद था। मगर अभी भी पर्यटकों को मंदिर में प्रवेश व दर्शन करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होगा। चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से...
कोणार्क सूर्य मंदिर में प्रवेश करने पर पर्यटकों के लिए नियम
- 13वीं शताब्दी की इस ऐतिहासिक धरोहर के दर्शन करने के लिए पर्यटकों को थर्मल जांच करानी और मास्क लगाना जरूरी है।
- मंदिर में एक दिन में केवल 2,000 लोग प्रवेश कर सकते हैं।
- प्रावधानों के अनुसार, पर्यटकों को टिकट ऑनलाइन बुक करवानी होगी। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर मोबाइल फोन से स्कैन भी करना होगा।
- मंदिर परिसर में स्थानीय गाइड, फोटोग्राफ आदि को प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
चलिए अब जानते हैं मंदिर से जुड़ी खास बातें...
भगवान सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से कुंडली में सभी दोष दूर होते हैं। भगवान सूर्य को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर बेहद खूबसूरत और रहस्यमयी है। यह मंदिर उत्तर पूर्वी किनारे के समुद्र तट के किनारे स्थापित है।
इस मंदिर से कई कहानियां भी जुड़ी है। माना जाता है कि मंदिर में भगवान सूर्य की 3 प्रतिमाएं है जो हर अवस्था को दर्शाती है। बता दें, बाल्यावस्था उदित सूर्य की ऊंचाई 8 फीट, युवावस्था जिसे मध्याह्न सूर्य कहाते हैं उनकी ऊंचाई 9.5 फीट है। इसके साथ तीसरी यानि प्रौढ़ावस्था अवस्था की प्रतिमा की ऊंचाई 3.5 फीट है। यह प्रतिमा अस्त सूर्य कहलाती है।
- यह मंदिर रथ के आकार का बना हुआ है। इसके कुल 24 पहिए और 7 घोड़े लगे है।
- यह मंदिर अपनी प्राचीन वास्तु व निर्माण कला से मशहूर है। इसे विशेष कलाकृति और कीमती धातुओं से तैयार किया गया है। इसके साथ ही यह ओडिशा राज्य का अकेला मंदिर है जो यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल है।
- इस मंदिर के प्रवेश भाग में 2 बड़े-बड़े शेर बने है जो हाथी का विनाश करते दिखाई देते हैं। इस नजारे में शेर गर्व व हाथी पैसों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- कहा जाता है कि मंदिर के ऊपरी भाग पर एक भारी चुंबक लगा था। साथ ही मंदिर के हर दो पत्थरों पर लोहे की प्लेट लगी है। कहते हैं कि चुंबक के कारण समुद्र से गुजरने वाले जहाज इस ओर खिंचे चले आते थे। इसके कारण उन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ता था। इसलिए अंग्रेजों ने इसे निकाल दिया था। मगर इस पत्थर को हटाने पर दीवारों के बाकी पत्थरों में असंतुलन हे जाने वह गिर गई थी। इस मंदिर के आकर्षण के चलते लोग खासतौर पर इस मंदिर में दर्शन करने व घूमने आते हैं।