नारी डेस्क : हर साल की तरह इस बार भी करवाचौथ व्रत महिलाएं धूमधाम से मनाया जाएगा। इस बार करवा चौथ व्रत 10 अक्टूबर को सिद्धि योग में मनाया जाएगा । व्रत के दौरान सुहागन महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण करती हैं और निर्जला व्रत प्रारंभ करती हैं। यह व्रत चंद्रोदय तक चलता है। शाम को महिलाएं मां गौरी और भगवान गणेश की पूजा करती हैं तथा पारंपरिक रूप से करवा चौथ की व्रत कथा सुनना अनिवार्य माना जाता है। आइए जानते हैं करवा चौथ की यह पौराणिक कथा।
करवा चौथ व्रत कथा
एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे और एक बेटी थीजिसका नाम करवा था। सभी भाई अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे। एक बार करवा अपने ससुराल से मायके आई थी। उस दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्थी थी, और करवा ने निर्जला करवा चौथ व्रत रखा था। रात होने लगी, लेकिन चंद्रमा का उदय नहीं हो रहा था। भूख-प्यास से व्याकुल करवा को देखकर उसके भाइयों को दया आई। तब सबसे छोटे भाई ने एक चालाकी की — उसने घर के बाहर पीपल के पेड़ पर छलनी में दीपक रख दिया। दूर से देखने पर ऐसा लगा जैसे चंद्रमा निकल आया हो।

छोटे भाई ने जाकर बहन से कहा, “बहन, चांद निकल आया है, अब तुम व्रत खोल लो।” करवा ने उस छलनी के दीपक को चांद समझ लिया और अर्घ्य देकर व्रत का पारण करने लगी।
करवा का व्रत भंग और पति की मृत्यु
जैसे ही उसने पहला निवाला मुंह में डाला, उसे छींक आ गई। दूसरा निवाला उठाया, तो उसमें बाल निकल आया। तीसरा निवाला खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। यह सुनते ही करवा का दिल टूट गया। जब उसे पता चला कि उसके छोटे भाई ने झूठा चांद दिखाया था, तो वह रोती हुई बोली
“मैं अपने पति को पुनः जीवित कराऊंगी।”
करवा ने अपने पति के शव को सुरक्षित रखा और पूरे एक वर्ष तक उसी के पास रहकर कठोर तप किया।

भक्ति और आस्था से मिला जीवन
एक वर्ष बाद जब करवा चौथ का दिन फिर आया, तो उसकी सभी भाभियां व्रत करने लगीं। पूजा के समय वे आशीर्वाद लेने करवा के पास आईं। करवा ने प्रत्येक भाभी से कहा—“यम की सूई ले लो, पिया की सूई दे दो, मुझे भी सुहागन बना दो।” पहली छह भाभियों ने उसकी बात ठुकरा दी। अंत में सबसे छोटी भाभी आई। जब उसने करवा का दुख और तप देखा, तो उसका हृदय पिघल गया। उसने अपनी छोटी अंगुली काटकर अमृत की कुछ बूंदें निकालीं और करवा के पति के मुंह में डाल दीं। जैसे ही अमृत की बूंदें पड़ीं, करवा का पति गणेश जी का नाम लेते हुए जीवित हो गया।
करवा चौथ का संदेश
कहा जाता है कि इस व्रत की शक्ति और करवा की श्रद्धा से ही उसके पति को नया जीवन मिला। इसलिए जो भी स्त्री पूरे विश्वास, श्रद्धा और नियम से करवा चौथ व्रत करती है, उसे मां गौरी और भगवान गणेश की कृपा से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।

करवा चौथ की कथा सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि स्त्री की निष्ठा, प्रेम और आस्था का प्रतीक है। यह व्रत सिखाता है कि सच्ची निष्ठा और विश्वास से असंभव भी संभव हो सकता है।