नारी डेस्क : करवा चौथ 2024 में 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह त्योहार विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि वे इस दिन अपने पतियों की लंबी उम्र और सुखद जीवन के लिए उपवास करती हैं। इस दिन, महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रमा उदय तक उपवासी रहती हैं, अर्थात् वे पानी और भोजन का सेवन नहीं करतीं। वे पारंपरिक कपड़े पहनती हैं और आभूषणों से सजती हैं। शाम को, महिलाएं पूजा करती हैं और विशेष रूप से करवा चौथ की कथा सुनती हैं। चंद्रमा के दर्शन के बाद, वे अपने पति की लंबी उम्र और कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं और फिर अपना उपवास तोड़ती हैं। चलिए, आपको पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और चंद्रोदय का समय बताते हैं।
करवा चौथ शुभ मुहूर्त और चांद निकलने का समय?
करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05:46 से 07:02 बजे तक रहेगा। व्रत का समय 06:25 AM से 07:54 PM तक रहेगा और चांद निकलने का समय शाम 7 बजकर 54 मिनट का बताया जा रहा है।
करवा चौथ सरगी
करवा चौथ का पवित्र त्यौहार सरगी के साथ शुरू होता है। ये रस्म व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले की जाती है। इस दौरान व्रती महिलाएं सात्विक भोजन का ग्रहण ही करती हैं। सरगी में भोजन, फल, पानी, मेवे और मिठाई आदि चीजें होती हैं।
करवा चौथ की पूजन थाली सामग्री
करवा चौथ की पूजन थाली सजाना एक खास परंपरा है, जिसमें विभिन्न वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। यहां कुछ सामान्य चीज़ें हैं जो करवा चौथ की थाली में शामिल की जाती हैं। चांद को अर्घ्य देने के लिए मिट्टी का करवा, फल-फूल, सुहाग से जुड़ा सामान, करवा माता की फोटो, सींक, करवा, छलनी, आटे का दीया, जल, चावल, पान, मिठाई, रोली, दही, देसी घी, कच्चा दूध, चंदन, कुमकुम, हल्दी, चन्दन, अक्षत, कलश भरा जल, करवाचौथ व्रत की कथा, सिंदूर, शक्कर, शहद, नारियल होता है। इन चीजों को एकत्रित करके एक सुंदर थाली तैयार करें और पूजा विधि के अनुसार सम्पन्न करें।
करवा चौथ की शाम में क्या किया जाता है?
करवा चौथ की शाम को महिलाएं श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फिर फेरी की रस्म करती हैं। इस रस्म के दौरान महिलाएं एक घेरा बनाकर बैठती हैं और अपनी-अपनी पूजा की थाली एक-दूसरे के साथ बांटती हैं। इस दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा सुनाती है। ये सभी गतिविधियां इस दिन के महत्व को और बढ़ाती हैं और पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत बनाती हैं।
करवा चौथ की पूजन विधि
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके फिर निर्जला व्रत का संकल्प लें। यह व्रत सूर्यास्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना होती है और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए। करवा चौथ की पूजा के लिए शाम के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। फिर इसमें 10 से 13 करवे रखे जाते हैं। इसके साथ ही पूजा के स्थान पर पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि एक थाली में रख लें। मंदिर में दीपक जलाएं। करवा माता के साथ-साथ भगवान शिव, पार्वती जी, कार्तिकेय जी और गणेश भगवान की विधि विधान पूजा से करें। फिर करवा चौथ की कथा सुनें। इसके बाद चांद निकलने पर चांद की पूजा करें। इस दिन चंद्र का दर्शन छलनी के द्वारा किया जाता है और साथ ही दर्शन के समय चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि चीजें देकर उनका आशीर्वाद लेती हैं।
करवा चौथ व्रत का महत्व
करवा चौथ व्रत महिलाएं पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। इस व्रत में करवा माता, भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय भगवान के साथ-साथ गणेश जी की पूजा की जाती है। महिलाएं चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत खोलती हैं। करवा चौथ का व्रत बेहद कठोर माना जाता है क्योंकि इस दिन अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता है। कई जगह में इस व्रत को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत का पालन करने से न केवल पति की लंबी उम्र की कामना होती है, बल्कि यह परिवार और समाज में एकता और प्रेम का संदेश भी फैलाता है।
करवा चौथ केवल एक उपवास का दिन नहीं है, बल्कि यह वैवाहिक प्रेम, बंधन और सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव है।