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लट्ठमार नहीं गोकुल में खेली जाती है छड़ी मार होली, ऐसे हुई थी इस अनोखी रीत की शुरुआत

  • Edited By palak,
  • Updated: 22 Feb, 2023 05:26 PM
लट्ठमार नहीं गोकुल में खेली जाती है छड़ी मार होली, ऐसे हुई थी इस अनोखी रीत की शुरुआत

होली का पर्व आने वाला है। ब्रज और मथुरा की होली सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है। यहां की होली देखने सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। यहां पर यह पर्व फुलेरा दूज से शुरु होता है। फुलेरा दूज में फूलों के साथ होली खेली जाती है। इसके अलावा यहां लड्डू मार, लट्ठमार होली भी खेली जाती है। लट्ठमार होली में लोग मार खाकर खुद को बहुत ही खुशनसीब मानते हैं। यहां ब्रज में लट्ठमार होली खेली जाती है वैसे ही गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को यह होली बहुत ही धूमधाम से खेली जाती है। इस बार छड़ीमार होली कब खेली जाएगी और इसकी शुरुआत कैसे हुई आज आपको इसके बारे में बताएंगे....

04 मार्च को मनाई जाएगी छड़ीमार होली 

फाल्गुन महीने की द्वादशी तिथि को छड़ीमार होली का आयोजन किया जाता है। इस साल छड़ीमार होली 04 मार्च को मनाई जाएगी। 

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कैसे मनाई जाती है छड़ीमार होली?

गोकुल में लाठी की जगह छड़ी के साथ होली खेली जाती है। इस दिन गोपियां होली खेलने के लिए आए कान्हाओं पर छड़ी बरसाती हैं। ऐसा माना जाता है कि कान्हा जी बचपन से ही बहुत चंचल होते थे, गोपियों को परेशान करने में उन्हें बहुत ही आनंद मिलता था, इसलिए गोकुल में उनके बालस्वरुप को ज्यादा महत्व दिया जाता है। नटखट कान्हा की याद में हर साल यहां पर छड़ीमार होली का आयोजन बहुत ही धूमधाम से किया जाता है। माना जाता है कि कान्हा जी के बाल स्वरुप को लाठी से चोट न लग जाए इसलिए यहां पर लाठी की जगह छड़ी के साथ होली खेली जाती है। 

कान्हा के पीछे छड़ी लेकर भागती हैं गोपियां 

इस दिन कान्हा की पालकी सजाई जाती है, जिसके पीछे गोपियां हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं। यह परंपरा काफी लंबे समय से यहां पर चलती आ रही है। छड़ीमार होली की शुरुआत यमुना के किनारे स्थित नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के सामने राजभोग का भोग लगाकर की जाती है। 

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10 दिन पहले ही हो जाती है शुरुआत 

 परंपरा के मुताबिक, हर साल होली खेलने के लिए गोपियां करीबन 10 दिन पहले ही छड़ीमार होली की तैयारियां शुरु कर देती हैं। गोपियां दूध, दही, मक्खन, लस्सी, काजू, बादाम खिलाकर होली खेलने के लिए तैयार होती हैं। इसके अलावा छड़ीमार होली देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु गोकुल में आते हैं। 

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