महिलाएं जब भी कुछ करने का सोचती है तो उनके कदम को कुछ न कुछ कहकर रोक दिया जाते हैं। मुस्लिम महिलाओं के हालात तो इससे भी ज्यादा दयनीय है। ऐसे में मुस्लिम महिला का फुटबॉल कोच बनना किसी सपने से कम नहीं है। जी हां, चेन्नई की 35 वर्षीय तमीमुन्निसा जब्बार ऐसी ही महिला हैं जो लड़कियों को फुटबॉल सिखाती हैं। उन्हें प्यार से लोग तमीम भी बुलाते हैं।
लड़कियों को सिखाती है फुटबॉल
तमीमुन्निसा चेन्नई में मुस्लिम महिला एसोसिएशन स्कूल की टीम में फॉर्वर्ड खेलने वाली 14 वर्षीय आबिदा को भी तमीम ट्रेनिंग देती हैं। आबिदा के परिवार को उसका फुटबॉल खेलना पसंद नहीं है। ऐसी ही रूढ़िवादी परिवार से आने वाली लड़कियों के लिए तमीम ने फुटबॉल सिखाने का फैसला किया।
हिजाब और फुल पैंट्स में फुटबॉल
तमीम लड़कियों को हिजाब और फुल पैंट्स में फुटबॉल सिखाती है और इससे लड़कियों को फुटबॉल खेलने में किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। तमीम फुटबॉल सीखाने के साथ-साथ एसोसिएशन स्कूल के बच्चों को पीटी की शिक्षा भी देती है।
खुद रखती हैं लड़कियों का ध्यान
उन्हें पढ़ाने के साथ-साथ तमीम लड़कियों का ध्यान भी रखती है। वह उन्हें प्रैक्टिस के बाद खुद घर छोड़कर आती है। वह कहती हैं, 'अधिकतर परिवार लड़कियों के स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने पर सहमत नहीं होते हैं इसलिए मुझे इन लड़कियों को हिजाब पहनाना पड़ता है। इससे कम से कम वे खेल में हिस्सा तो ले पाती हैं।'
'लेडी बाइचुंग भूटिया' की मिली उपाधि
चेन्नई के चेंगलपेट में पढ़ाई करते समय उन्होंने फुटबॉल खेलना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने कई स्टेट लेवल मैच खेले और कांचीपुरम का एक मैच जीत भी लिया। 1999 में ऊटी में हुए एक मैच में उन्होंने ऐसा प्रदर्शन किया कि उन्हें अखबारों ने 'लेडी बाइचुंग भूटिया' का उपाधि दे दी गई।
कोच बनने के लिए पिता ने किया प्रेरित
अखबार में बेटी का नाम देखने के बाद तमीम के पिता की आंखों से आंसू आ गए। उनके पिता ने ही बाद में तमीम को कोच बनने के लिए प्रेरित किया और अपने ही जैसी लड़कियों को फुटबॉल सिखाने की सलाह दी थी।
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