13 जनवरी को पूरे उत्तर भारत में बड़ी ही धूमधाम से लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है लेकिन पंजाब और हरियाणा में इसका खास रौनक देखने को मिलती है। इस दिन लोग अग्नि में मूंगफली, तिल, गजक आदि अर्पित करके उसकी परिक्रमा करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है और पंजाबियों के इस त्यौहार का नाम लोहड़ी कैसे पड़ा? चलिए आपको बताते हैं इस खास पर्व से जुड़ी कुछ जरूरी बातें...
लोहड़ी की धार्मिक मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार, लोहड़ी पर्व का कनैक्शन माता सती से भी जुड़ा है। एक बार देवी सती भगवान शिव की आज्ञा लिए बिना पिता दक्ष के घर महासज्ञ में गई थी। मगर, प्रजापति ने अपनी पुत्री का स्वागत करने की बजाए उनका व भगवान शिव का अपमान किया। तब देवी सती ने क्रोधित होकर खुद को हवन कुंड के हवाले कर आत्मदाह कर लिया। लेकिन जब प्रजापति दक्ष को अपनी भूल का अहसास हुआ तब उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी। जब माता सती ने पार्वती रूप में जन्म लिया तब प्रजापति ने देवी के ससुराल में लोहड़ी के अवसर पर उपहार भेजें और अपनी भूल सुधारने की कोशिश की। बस उसी दिन से लोहड़ी के अवसर पर नववैवाहित महिलाओं को मायके से वस्त्र और उपहार भेजे जाते हैं।
दुल्ला भट्टी की कहानी
लोहड़ी के पीछे एक और एतिहासिक कथा है जिसे दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता हैं। अकबर शासनकाल में डाकू दुल्ला भट्टी पंजाब प्रांत का सरदार था, जिसे 'अब्दुल भट्टी' भी कहते थे। उसे 'पंजाब के नायक' की उपाधि से सम्मानित किया गया था। कहा जाता है कि उन्होंने कुछ लड़कियों को दुष्कर्म के चुंगल से बचाकर उनकी शादी करवाई और सम्मानपूर्वक जिंदगी दी। बस तभी से लोहड़ी का पर्व दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाए बिना अधूरा माना जाता है। कथा के साथ लोहड़ी का यह गीत भी गाया जाता है...
'सुंदर-मुंदरिए हो, तेरा कौन बेचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले ने धी ब्याही हो।
सेर शक्कर पाई-हो कुड़ी दा लाल पटाका हो।
कुड़ी दा सालू फाटा हो-सालू कौन समेटे हो।
चाचा चूरी कुट्टी हो, जमींदारा लुट्टी हो।
जमींदार सुधाए-हो, बड़े पोले आए हो
इक पोला रह गया-हो, सिपाही फड़ के लै गया हो
सिपाही ने मारी ईंट, भावें रो भावें पिट,
सानूं दे दो लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी।'
'साडे पैरां हेठ रोड़, सानूं छेती-छेती तोर,
साडे पैरां हेठ दहीं, असीं मिलना वी नईं,
साडे पैरां हेठ परात, सानूं उत्तों पै गई रात
दे माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी।'
लोहड़ी का श्रीकृष्ण से नाता
कथाओं के अनुसार, एक बार गोकुलवासी मकर संक्रांति की तैयारी में लगे हुए थे और तभी कंस ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को नंदगांव भेजा। लोहिता ने अवसर का लाभ उठाकर श्रीकृष्ण को मारना चाहा लेकिन प्रभु ने उन्हीं का वध कर दिया। बस तभी से मकर संक्रांति के एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाने लगा।
ये भी है कहानी...
ऐसी भी कहानी है कि लोहड़ी और होलिका दोनों बहने थीं। लोहड़ी का प्रवृति अच्छी तो होलिका का व्यवहार बुरा था। एक दिन होलिका अग्नि में जल गई और लोहड़ी बच गई। बस तभी से पंजाब में उसकी पूजा की जाने लगी और उसी के नाम पर लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा।
फसल बुआई-कटाई का त्यौहार
इसके अलावा पंजाब में लोहड़ी का पर्व फसल काटने के उपलक्ष्य में भी मानाया जाता है। इस दिन किसान पुरानी खेती की कटाई के साथ नई खेती की बुआई भी करते हैं। इस वक्त यहां गन्ने की फसल की कटाई की जाती है और खेतों में सरसों के फूल लहराते दिखाते हैं।
लोहड़ी की आग में क्यों डाला जाता है तिल-गुड़
लोहड़ी के मौके पर लोग घर के आंगन में आग जलाकर उसमें तिल, मूंगफली, रेवड़ी, गुड़, गजक आदि अर्पित करते हैं। ऐसा लोग सूर्य व अग्नि देव का आभार प्रकट करने के लिए करते हैं क्योंकि उनकी कृपा से ही फसल अच्छी होती है। वहीं, मान्यता है कि ऐसा करने से सारा साल कृषि में उन्नति होती है और घर में भी अन्न-धन्न की कभी कमी नहीं होती।