हर साल 15 अगस्त को आजादी का जश्न मनाया जाता है। इस साल देश को आजाद हुए पूरे 76 साल हो गए हैं। अंग्रोजों के खिलाफ आजादी में लड़ाई में बढ़-चढ़कर सिर्फ पुरुषों ने ही नहीं बल्कि महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। वो भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली थी और अंग्रोजों ने दांत खट्टे कर दिए थे। आइए आपको बताते हैं independence day के मौके पर इन शक्तिशाली महिलाओं के बारे में...
रानी लक्ष्मी बाई
भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो रानी लक्ष्मीबाई के नाम सबसे आगे आता है। देश की पहली स्वतंत्रता संग्राम (1857) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वो वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं।
सरोजिनी नायडू
भारती की कोकिला के नाम से जानी जाने वाली सरोजिनी नायडू सिर्फ देश की आजादी के लिए नहीं लड़ी, बल्कि बहुत एक बहुत अच्छी कवियत्री भी थीं। सरोजिनी नायडू ने खिलाफ आंदोलन की बागडोर संभाली और अंग्रजों को भारत से निकालने में अहम योगदान दिया है।
बेगम हज़रत महल
अवध की बेगम ने कई सारे लोगों को ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह करने और भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठने के लिए प्रोत्साहित किया। ने अपने महिला सैनिकों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। इनके कुशल नेतृत्व में सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए और लखनऊ पर दोबारा कब्जा कर लिया। इतिहास कारों के अनुसार इस लड़ाई में बेगम का साथ नाना साहिब, राजा जयलाल, राजा मानसिंह ने साथ दिया था। अंततः उन्हें नेपाल में शरण मिली जहां 1879 में उनकी मृत्यु हो गई।
कस्तूरबा गांधी
मोहनदास करमचंद गांधी ने ‘बा’ के बारे में खुद स्वीकार किया था कि उनकी दृढ़ता और साहस खुद गांधीजी से भी उन्नत थे। महात्मा गांधी की आजीवन संगिनी कस्तूीरबा की पहचान सिर्फ यह नहीं थी, आजादी की लड़ाई में उन्होंने हर कदम पर अपने पति का साथ दिया था, बल्कि यह कि कई बार स्वतंत्र रूप से और गांधीजी के मना करने के बावजूद उन्होंने जेल जाने और संघर्ष में शिरकत करने का निर्णय लिया. वह एक दृढ़ आत्मशक्ति वाली महिला थीं और गांधीजी की प्रेरणा भी।
विजया लक्ष्मी पंडित
एक कुलीन घराने से ताल्लुक रखने वाली और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मीं पंडित भी आजादी की लड़ाई में शामिल थीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं। वे संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत, जिन्होंने मॉस्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।