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रामसेतु का वो चमत्कार जिसे साइंस ने भी माना

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 13 Apr, 2020 06:32 PM
रामसेतु का वो चमत्कार जिसे साइंस ने भी माना

रामसेतु जिसके अस्तित्व को लेकर अक्सर ही बहस होती रहती है। कुछ लोगों ने कहा यह केवल कल्पना है तो कुछ ने इसे वास्तव में होने की बात कहीं। रामसेतु एक पुल है जिसका जिक्र रामायण में भी किया गया है।  धार्मिक महत्ता के अनुसार, राम सेतु पुल वो पुल था जहां श्रीराम के नाम के पत्थरों को पानी में फेंका गया लेकिन वो डूबे नही बल्कि पानी में तैरने लगे और इसी तरह लंका तक जाने का रास्ता बना।

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दिलचस्प बात तो यह कि स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण और ब्रह्म पुराण में राम सेतु का उल्लेख मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि 15 वीं सदी तक रामसेतु का अस्तित्व था, लेकिन समुद्री तूफ़ान के कारण पानी इसके ऊपर आ गया और कई जगह से यह टूट गया। वैज्ञानिकों के कुछ तथ्य यह भी रामसेतु की प्राचीनता को साबित करते हैं। नासा द्वारा उपग्रह से खींचे गए चित्रों में रामसेतु की चौड़ाई 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग की रेखा की तरह दिखती है। चलिए आज हम आपको इसी बारे में कुछ धार्मिक मान्यताओं के बारे में बताते हैं...

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार,  जब रावण माता-सीता का हरण कर लंका ले गया था तब श्रीराम ने वानरों की सहायता से समुद्र के बीच एक पुल का निर्माण किया था। वानर सेना ने केवल 5 दिनों में किया ये पुल 30 किलोमीटर लंबा व 3 किलोमीटर चौड़ा है। ऐसा भी माना जाता है कि श्री राम ने समुद्र देवता की पूजा की लेकिन वो प्रगट नही हुए जिससे क्रोधित होकर राम जी ने समुद्र सूखा देने के लिए अपना धनुष उठाया इससे भयभीत होकर समुद्र देव बाहर आए और कहा- हे श्री राम आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे उपर पत्थर का पुल बनाए मैं इन पत्थरों का वजन अपने उपर ले लूंगा' वहीं कहा यह भी जाता है जिन पत्थरों पर श्रीराम का नाम लिखा था वो पत्थर समुद्र में नहीं डूब रहे थे।

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इसके बाद नल और नील ने इस पुल को बनाने की जिम्मेदारी ली... वैज्ञानिकों का मानना है कि नल तथा नील शायद ये जानते थे कि कौन सा पत्थर किस प्रकार रखने से पानी में डूबेगा नही। जिन पत्थरों का उन्होंने इस्तेमाल किया उन्हें ' प्यूमाइस स्टोन' कहते है ऐसे पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन होते है व इनमें कई सारे छिद्र भी पाए जाते है और इन्ही छिद्रों की वजह से पत्थर स्पॉजी हो जाते है और इसी के कारण इनका वजन भी कम हो जाता है जिसकी वजह से पानी पर तैरते रहते है लेकिन बाद में जब इन छिद्रों में पानी भर जाता है तो ये डूब जाते है इसी के कारण ये पत्थर आज समुद्र में डूब चुके है।

अगर वैज्ञानिक कारण देखेंं तो अमेरिकी आर्कियोलॉजिस्ट की टीम ने भी रामसेतु के अस्त‍ित्व के दावे को सच बताया है। उन्होंने इसे एक सुपर ह्यूमन एचीवमेंट बताया है। अध्ययन रिपोर्ट की मानें तो भारत-श्रीलंका के बीच 30 मील के क्षेत्र में बालू की चट्टानें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं, लेकिन उन पर रखे गए पत्थर कहीं और से लाए गए प्रतीत होते हैं जो करीब चार-पांच हजार साल पुराने  बताए जा रहे हैं।

श्रीराम नाम का चमत्कार जिसे वैज्ञानिकों ने भी अपनी मौहर लगाई कि इस पुल का अस्तित्व है।

 

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