वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव के मल से निकाले गए बैक्टीरिया से गोली बन सकती हैं जो आंतों के संक्रमण (Food Poisoning) से पीड़ित लोगों का इलाज करने में वाकई मददगार होगी। दरअसल एक नए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। इस स्टडी के दौरान recurrent clostridium difficile infections (जिसके चलते दस्त लगते हैं और इंसान की मौत भी हो सकती है ) से पीड़ित रोगियों पर इसे आजमाया गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि अक्सर पेट संबंधी किसी भी तरह की दिक्कत होने पर लोग कई तरह की एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल कर लेते हैं जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि एंटीबायोटिक्स से बहुत बारी अच्छी बैक्टीरिया मिट जाती है और जिससे सी डिफिसाइल जैसी हानिकारक बैक्टीरिया को आंतो में पनपने की जगह मिल जाती है।
अल्बर्टा के कैलगरी विश्वविद्यालय के एक्सपर्ट्स का कहना है कि अध्ययन के कुछ रोगी एंटीबायोटिक उपचार और आवर्तक सी डिफिसाइल संक्रमण की चपेट में थे। अध्ययन प्रतिभागियों को अध्ययन से पहले सी डिफिसाइल के कम से कम चार मुकाबलों का सामना करना पड़ा। वहीं जब इन्हें इंसानी मल से बनी गोलियां दे गई तो लगभग सभी पीड़ित प्रतिभागी सी डिफिसाइल संक्रमण से पूरी तरह से मुक्त हो गए। उन्हें इसके बाद लगभग तीन महीने से 1 साल तक संक्रमण का सामना नहीं करना पड़ा। प्रतिभागियों ने पांच से 15 मिनट की अवधि में 24 से 34 कैप्सूल लिए और गोलियों के कारण उल्टी नहीं हुई।
वहीं स्टडी को नजदीक से देख रहें एक्सपर्ट्स ने ये भी बताया कि सिर्फ एक ही ऐसा प्रतिभागी तक, जिसे संक्रमण ने फिर से अपने चपेट में लिया। लेकिन ये भी सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि उसने किसी दूसरे हुए संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स ले ली थी।
पूप ट्रांसप्लांट जिसे औपचारिक तौर पर माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन के नाम से भी जाना जाता है को पहले भी सी डिफिसाइल संक्रमणों के इलाज के लिए एक प्रभावी तरीके से तौर पर देखा जाता रहा है। लेकिन पहले इसे बैक्टीरिया के रुप में एक ट्यूब से, नाक से या गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के माध्यम से दिया जाता था। ये एक मंहगी प्रकिया होती थी। अब शोधकर्ताओं ने इसी मल बैक्टीरिया को गोलियां का रुप दे दिया। इसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है ही, साथ ही ये बजट में भी है।