नारी डेस्क : अक्सर लोग ब्रेस्ट कैंसर का लक्षण केवल गांठ को मानते हैं, जबकि कई बार यह बिना गांठ के भी हो सकता है। शुरुआती हल्के संकेतों को नजरअंदाज करना खतरनाक साबित होता है। ICMR की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं के कुल कैंसर मामलों में 28% ब्रेस्ट कैंसर के हैं, जिनमें ज्यादातर देर से पहचान में आते हैं।
गांठ ही नहीं, ये हैं ब्रेस्ट कैंसर के अन्य शुरुआती संकेत
डॉक्टरों के अनुसार, हर ब्रेस्ट कैंसर गांठ के रूप में नहीं दिखाई देता। कई बार शरीर ऐसे लक्षण दिखाता है जिन्हें हल्के में ले लिया जाता है।

जैसे — लगातार थकान महसूस होना
हड्डियों में दर्द होना और बिना कारण वजन घटना।
एक ब्रेस्ट का आकार या आकार में बदलाव और निप्पल का अंदर की ओर खिंचाव या उससे स्राव (discharge)।
स्किन पर झुर्रियां या डिंपल जैसी बनावट आना
अगर ऐसे लक्षण दिखें, तो इन्हें सामान्य हार्मोनल बदलाव न समझें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
महिलाओं में क्यों बढ़ रहे हैं ब्रेस्ट कैंसर के केस
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ब्रेस्ट कैंसर महिला कैंसर के लगभग 28% मामलों के लिए जिम्मेदार है। चिंता की बात यह है कि देश में 60% से अधिक मामलों की पहचान स्टेज 3 या 4 में होती है, जब बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि शुरुआती लक्षण हल्के होते हैं और अक्सर इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है।

ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर से रहें सतर्क
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (Triple Negative Breast Cancer) एक ऐसा प्रकार है जो युवा महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है और बेहद आक्रामक होता है। इसके लक्षण सामान्य ब्रेस्ट बदलाव जैसे लग सकते हैं, इसलिए किसी भी असामान्य बदलाव पर तुरंत जांच कराना जरूरी है।
शुरुआती पहचान से बचाव संभव
ब्रेस्ट कैंसर से डरने के बजाय इसकी समय पर जांच जरूरी है।
20 साल की उम्र के बाद हर महिला को महीने में एक बार खुद से ब्रेस्ट जांच करनी चाहिए।
20–39 साल की उम्र में हर तीन साल में क्लीनिकल जांच करवाएं।
40 साल से ऊपर या जिनके परिवार में कैंसर का इतिहास है, उन्हें हर साल मैमोग्राफी करवानी चाहिए।
समय पर पहचान से न केवल इलाज आसान होता है बल्कि सर्वाइवल रेट 90% से ज्यादा हो सकती है।

ब्रेस्ट कैंसर को सिर्फ “गांठ” तक सीमित समझना एक बड़ी गलती है। हर महिला को अपने शरीर के हल्के से हल्के बदलाव को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि जितनी जल्दी पहचान, उतना आसान इलाज।