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Nurses Day: कौन थीं 'लेडी विद द लैम्प' फ्लोरेंस, कैसे बनी लोगों के लिए मिसाल

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 12 May, 2020 02:43 PM
Nurses Day: कौन थीं 'लेडी विद द लैम्प' फ्लोरेंस, कैसे बनी लोगों के लिए मिसाल

बीमारों को जिंदगी देने में जितना योगदान डॉक्टर्स का होता है उतना ही नर्सेज का भी होता है। नर्स बीमारों की तन और मन से सेवा करती है। इसलिए हर साल 12 मई यानि आज उनके योगदान को समर्पित किया गया है। आज दुनियाभर में आज अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जा रहा है। मगर, क्या आप जानते हैं कि इस दिन को मनाने की शुरूआत कहां और कैसे हुई।

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फ्लोरेंस नाइटिंगेल की याद में मनाया जाता है यह दिन

अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस आधुनिक नर्सिंग की जननी ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ की याद में मनाया जाता है। 1965 से अभी तक यह दिन हर साल इंटरनैशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज द्वारा अंतरराष्‍ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। अमेरिका के स्वास्थ्य, शिक्षा व कल्याण विभाग के एक अधिकारी डोरोथी सुदरलैंड ने पहली बार नर्स दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। इसकी घोषणा अमेरिका के राष्ट्रपति डेविट डी. आइजनहावर ने की थी।

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कौन है फ्लोरेंस नाइटिंगेल?

12 मई, 1820 को ब्रिटि‍श परिवार में जन्मी फ्लोरेंस नाइटिंगेल अपनी सेवा भावना के लिए जानी जाती है। उन्होंने 1860 में सेंट टॉमस अस्पताल और नर्सों के लिए नाइटिंगेल प्रशिक्षण स्कू‍ल की स्थापना की थी। उन्होंने मरीजों व रोगियों की सेवा की प्रीमिया युद्ध के दौरान लालटेन लेकर घायल सैनिकों की दिल से सेवा की थी, जिसके कारण ही उन्हें ‘लेडी बिथ द लैम्प’ कहा गया।

भारत भी है कर्जदार

भले ही उनका जन्म इटली के फ्लोरेंस में हो लेकिन वह मानव सेवा को ही अपना धर्म मानती थी। यही नहीं, भारत ही उनके अतुल्य काम का कर्जदार है। उन्होंने भारत के अस्पतालों और पानी की सफाई पर भी बहुत जोर दिया बल्कि वो इस संबंध में बाद में लगातार भारत से रिपोर्ट मंगाकर उस पर अपने सुझाव देतीं थीं। और उनमें सुधार भी करवाती थी। इस लिहाज से भारत भी फ्लोरेंस नाइटिंगेल का कर्जदार है।

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पहली बार की सैनिकों की देखभाल

1853 में जब क्रीमिया युद्ध शुरू हुआ तो ब्रिटिश सैनिक अस्पतालों में घायल होकर बुरी स्थिति में थे। मगर, उनकी सही तरीके से देखभाल नहीं हो पा रही थी इसलिए फ्लोरेंस कई नर्सों के साथ वहां पहुंची और उनकी सेवा शुरू की। उन्होंने सैनिकों के भोजन से लेकर स्वच्छता में बड़ा योगदान दिया। उनकी इस देखभाल से अस्पताल में सैनिकों की मौत कम होने लगी।

नर्सिंग के पेशे का महत्व दिखाया

फ्लोरेंस नाइटिंगेल व उनकी बहनों को घर पर तालीम दी गई थी। वह बचपन से ही काफी इंटेलिजेंट थी। हालांकि उनकी दिलचस्पी गणित में थी लेकिन उन्होंने नर्सिंग के पेशे का महत्व समझ यह काम शुरू किया। उनके इस कदम से लोग नर्सिंग के पेशे को सम्मान की नजर से देखने लगे। यही नहीं, उन्होंने ब्रिटेन के लोगों को समझाया कि लोग भी बीमारी के दौरान कैसे एक-दूसरे के मददगार बन सकते है।

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शादी में दिलचस्पी नहीं थी

फ्लोरेंस नाइटिंगेल खूबसूरत, पढ़ी-लिखी, काबिल और समझदार थीं लेकिन उन्हें शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उन्हें नर्सिंग के पेशे में जाकर लोगों की सेवा करनी थी। हालांकि उनका एक लंबा प्रेम संबंध बना लेकिन वो ज्यादा समय नहीं चला। इसके बाद उन्होंने रोम व पेरिस के अस्पतालों के दौरे किए और जर्मनी जाकर नर्सिंग की ट्रेनिंग ली। 1853 में फ्लोरेंस लंदन के हार्ले स्ट्रीट अस्पताल में नर्सिंग की प्रमुख बन गईं।

मजबूत इरादों वाली महिला

वह एक मजबूत इरादों वाली महिला थी। सेवा भावना की वजह से वह हर महिला के लिए मिसाल बन गई। उन्होंने अपने आखिरी वक्त में भी लोगों की सेवा करना नहीं छोड़ा और अपने लंबे करियर के बाद 1910 में 90 साल की उम्र में फ्लोरेंस का देहांत हो गया।

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