घर का काम हो या ऑफिस का... आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चल रही हैं। हालांकि न्यायपालिका के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा दिखाई नहीं दे रही। जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए एक फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अब समय आ गया है कि महिलाओं के भारत का प्रधान न्यायाधीश बनाया जाए।
घरेलू जिम्मेदारियों के कारण महिलाएं नहीं बनती जज
हाईकोर्ट में अस्थायी जजों की नियुक्ति से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सूर्यकांत की विशेष पीठ महिला वकीलों में से जज चुनने की परेशानियों पर विचार किया गया। चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा, अक्सर देखा जाता है कि महिला वकीलों को जब भी जज बनने का प्रस्ताव दिया जाता है तो वह घरेलू जिम्मेदारियों या बच्चों की पढ़ाई का हवाला देकर प्रस्ताव को ठुकरा देती हैं।
महिलाओं की सहभागिता जरूरी
पीठ कहा कहना है कि समाज के विकास और लैंगिक समानता में न्याय करने के लिए महिलाओं की सहभागिता बेहद जरूरी है। हालांकि इस याचिका पर कोर्ट ने फिलहाल किसी भी तरह का नोटिस जारी करने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि वे महिलाओं के हित में हैं लेकिन इसके लिए किसी योग्य उम्मीदवार की जरूरत है।
हाईकोर्ट में सिर्फ 70 महिला जज
एसोसिएशन के मुताबिक हाईकोर्ट में स्थायी और एडिशनल जजों की क्षमता 1,080 है। जिनमें 661 जज हैं और उनमें से 70 महिला जज हैं। महिला जजों को लेकर दायर की गई याचिका में कहा गया है कि 25 हाईकोर्ट में से मणिपुर, मेघालय, पटना, त्रिपुरा और उत्तराखंड के 5 हाईकोर्ट में कोई भी महिला जज नहीं है।