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Reality VS Reel: हीरो की मंडी को किसने बनाया था वेश्याओं का कोठा, फिल्म की असलियत में कितनी सच्चाई?

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 16 May, 2024 04:39 PM
Reality VS Reel: हीरो की मंडी को किसने बनाया था वेश्याओं का कोठा, फिल्म की असलियत में कितनी सच्चाई?

नारी डेस्क: इस समय संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज हीरामंडीः द डायमंड बाजार काफी सुर्खियों में है। फिल्म में हर किरदार ने फैंस के दिलो-दिमाग में एक अलग ही छवि छोड़ी है। हीरामंडी की तवायफों पर बनी इस फिल्म के बाद लोग असली हीरामंडी की रियल कहानी जानना चाहते हैं क्योंकि हीरामंडी का नाम सुनते ही लोगों के दिलों दिमाग में पहला ख्याल यहीं आता है कि यहां कोठे में रहने वाली महिलाएं वेश्यावृति करती थी जहां मुगल जाया करते थे।

एक रिपोर्ट की मानें तो कहा जा रहा है कि संजय लीला भंसाली ने जिस तरह से तवायफों की जिंदगी रॉयल दिखाई है असल में इतनी ऱॉयल जिंदगी उनकी होती नहीं थी। हालांकि बिब्बो जान का क्रिएटर रियल तवायफ से इंस्पायर्ड था जिसने आजादी के लिए फ्रीडम फाइटर्स का साथ दिया था। हीरामंडी में उन्हें रहने की पनाह भी दी जाती रही थी और आर्थिक सहायता भी।

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चलिए कुछ और फैक्ट्स आपको बताते हैं।

1. मुझरा, गायिकी और नाच से नवाबों को करते थे खुश

हीरामंडी का नाम सुनते ही लोगों को ये भी लगता है कि शायद यहां कभी हीरें का बाजार लगता होगा लेकिन हीरों से इसका कोई लेना देना नहीं था। हालांकि जैसा फिल्म में दिखाया गया है कि नवाब जब आते थे तो मुझरा गायिकी नाच से खुश होकर उन्हें इनाम देते थे, उसमें हीरे जवाहारात भी होते थे।

2. इस तरह पड़ा हीरामंडी नाम 

रिपोर्ट्स में दी जानकारी के मुताबिक, 1799 में लाहौर पर महाराजा रणजीत सिंह का राज हुआ। उसी दौरान हीरामंडी का नाम महाराजा रणजीत सिंह के दीवान हीरा सिंह के नाम पर रखा गया था। यह नाम उनके सम्मान में चुना गया था। उन्होंने यहां पर अनाज मंडी बनाई थी।  इसका मूल नाम 'हीरा सिंह दी मंडी' था जिसका अर्थ है हीरा सिंह का अनाज बाजार।

3. 'शाही मोहल्ला' से भी जाना जाता था

हीरामंडी पाकिस्तान के लाहौर शहर का एक इलाका है। अकबर के शासन काल के दौरान हीरामंडी को 'शाही मोहल्ला' के नाम से भी जाना जाता है। इस इलाके का उदय भी मुगल काल में हुआ था। उस समय मुगल कला केंद्र के रूप में इसे जाना जाता था जहां सिर्फ मुझरा नाच और गीत होता था। उस समय  शाही मोहल्ले में उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान से महिलाएं आती थी और वो क्लासिकल डांस करती थी, गाना गाती थीं। तवायफें खुद को फनकार कहती थी और पूरी हीरामंडी को कला से जोड़कर देखा जाता था लेकिन जब अहमद शाह अब्दाली का हमला हुआ और ब्रिटिश राज आया तो इसे रेड लाइट एरिया में बदल दिया गया। अंग्रेजों ने इसे वेश्यालय का केंद्र बना दिया।

 

4. अब रहती हैं यहां सेक्स वर्कर 

अब हीरामंडी को लेकर लोगों के दिमाग में यही बात पहले आती हैं कि यह वेश्याओं का कोठा है जहां सेक्स वर्कर रहती हैं हालांकि इस बारे में पाकिस्तानी राइटर फौजिया सईद ने भी अपनी किताब 'टेबो: द हेडन कल्चर ऑफ ए रेड लाइट एरिया' में हीरामंडी के बारे में लिखा है। राइटर के मुताबकि,'हम उनके बारे में केवल यही सोचते हैं कि वो सिर्फ सेक्स वर्कर थे। पहले मैंने भी ये ही सोचा था लेकिन जब मैंने वहां जाकर देखा तो मैं चौंक गई थी, क्योंकि ये साहित्य का केंद्र था। हीरामंडी ने जाने-माने लेखकों, शायरों, कलाकारों को जन्म दिया है। '

5. कोठे को कहते थे कला का केंद्र 

'मुगलकाल में अमीर लोगों के परिवार इन इलाकों में रहते थे। राजमहलों में उनके प्रोग्राम रहते थे। उस समय कोठे को कला का केंद्र कहा जाता था, जहां डांस, गाना आदि चीजें सिखाई जाती थी। यहां की महिलाएं खुद को एक्ट्रेस कहा करती थीं। यहां पर लोग ऊंचे स्तर की बातचीत सीखने भी आया करते थे।'  

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6. रईस खुद अपने बेटों को भेजते थे यहां

इन तवायफों के पास कला शिक्षक या उस्ताद होते हैं और वह अपनी कला से मेहमानों का मनोरंजन करती रही थी। रईस लोग अपने बेटे को शिष्टाचार और दुनिया के तौर-तरीके सीखने के लिए तवायफ के घर भेजते थे।

7.  रेस्तरां और दुकानों में बदला वेश्यावृति का केंद्र

लेकिन जब अंग्रेजों का राज आया तो यह वेश्यावृति का केंद्र बन गया हालांकि मुहम्मद जिया-उल-हक के शासनकाल के दौरान , संगीत और नृत्य घरों के खिलाफ एक अभियान भी चलाया गया था। हीरामंडी में वेश्यावृत्ति को गैरकानूनी घोषित किए जाने के बाद, इसे रेस्तरां और दुकानों में बदल दिया गया था।

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8. हीरामंडी का उपनाम रखा "बाज़ार-ए-हुस्न" 

तवायफ़ के संरक्षक अब सम्राट और रईस नहीं थे बल्कि शहर के धनी लोग थे, हीरामंडी ने अपना उपनाम "बाज़ार-ए-हुस्न" अर्जित किया। विभाजन के बाद हीरा मंडी की युवा और आकर्षक तवायफें, पाकिस्तानी फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद बन गईं। हीरामंडी की लड़कियाँ लॉलीवुड उद्योग में भी शामिल हुईं और कुछ सबसे कुशल तवायफों ने शुरुआती पाकिस्तानी फिल्मों में बैकअप नर्तक के रूप में प्रदर्शन किया। हीरामंडी और आसपास के इलाकों में कई नृत्य और संगीत कक्षाएँ थीं, जो तवायफों और संगीतकारों के चले जाने के कारण बंद हो गईं और बाद में कुछ हीरामंडी में वेश्यावृत्ति में शामिल होने के लिए आई। रियल हीरामंडी में अब बड़ा बाजार है जहां कई सारी दुकानें हैं।

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