यूं तो गरीब बच्चों पर तरस हर किसी को आता है लेकिन शायद ही ऐसा कोई हो जो इन बच्चों का जिम्मा उठाए। ऐसा ही कुछ कर एक मिसाल कायम कर रही है ऋचा प्रशांत। दिल्ली की रहने वाली ऋचा ने गरीब बच्चों की परवरिश की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली है। इतना ही नहीं, ऋचा ने गरीब बच्चों की देखभाल करने के लिए अपनी लाखों की नौकरी भी छोड़ दी है। ऋचा अब तक 10 सालों में वह हजारों बच्चों की जिंदगी में रंग भर चुकी हैं।
ऋचा 'सुनय फाउंडेशन' चलाती हैं जिसकी मदद से वो 300-400 गरीब बच्चों की पढ़ाई, स्टेशनरी, मिड-डे-मील, स्कूल यूनिफॉर्म और कंबल का खर्च उठाती हैं। अब तक वह 1 लाख बच्चों को मिड डे मील, 1500 कंबल और 1000 यूनिफॉर्म डोनेट कर चुकी हैं। उनकी इस फाउंडेशन में 8 से 80 साल तक के लगभग 100 वॉलंटियर जुड़े हैं, जो इस नेक काम व फंडिंग में उनकी मदद करते हैं। उन्होंने कई गरीब बच्चों का प्राइवेट स्कूल में दाखिला भी करवाया, ताकि वो पढ़-लिखकर कुछ बन सके।
ऐसे बच्चों की करती हैं मदद
ऋचा ऐसे बच्चों की मदद करती हैं, जिनके माता-पिता बहुत ज्यादा गरीब हो या जो अनाथ हो। वहीं जो माता पिता अपने बच्चों की शिक्षा व परवरिश पर ध्यान नहीं दे पाते, ऐसे बच्चों को ऋचा 3-4 घंटो के लिए अपने सस्थांन में ट्यूशन भी प्रोवाइड करवाती है। उनका फाउंडेशन का मकसद यही है कि वो जरूरतमंद बच्चों को सही शिक्षा व स्किल ट्रेनिंग देकर उनका भविष्य संवार सकें।
बच्चों के लिए छोड़ नौकरी
इस नेक काम के लिए उन्होंने 2009 में अपनी लाखों की नौकरी को भी हमेशा के लिए अलविदा कह दिया और 'सुनय फाउंडेशन' की नींव रखी। धीरे-धीरे कई लोग उनकी इस नेक सोच के साथ जुड़ते गए और अब उनका फाऊंडेशन अपने पैरों पर खड़ा है।
महिलाओं को कर रहे सशक्त
ऋचा की फाऊंडेशन ना सिर्फ बच्चों का भविष्य सवांर रही है बल्कि यहां महिलाओं को सशक्त करने का काम भी किया जाता है। दरअसल, उनकी फाऊंडेशन में जरूरतमंदर महिलाओं को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग भी दी जाती है, ताकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो ट्रेनिंग लेकर उन्हीं के संस्थान में गरीब बच्चों की टीचर, ट्रेनर और कोऑर्डिनेटर का काम संभाल रही हैं।
सही राह के लिए कोशिश जरूरी
उनका कहना है कि जब आप कुछ अच्छा करने की सोचते हैं तो आपको सिर्फ सही राह चुनने की जरूरत होती है, जैसे मैंने किया। शिक्षा के साथ-साथ वह बच्चों को सेमिनार और वर्कशॉप्स में भी शामिल किया जाता है। वहीं बच्चों को नशे और लिंग भेदभाव की जानकारियों से भी जागरुक करवाया जाता। साथ ही उनकी फाऊंडेशन में बच्चों को एक्सपर्ट की कहानियों और मोटिवेशनल बातें भी बताई जाती है, ताकि उन्हें सही राह चुनने में मदद मिले।
प्राइवेट स्कूलों में 500 बच्चों का दाखिला कराया
उनकी फाउंडेशन अब तक EWS कोटे से 500 बच्चों का प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन करवा चुकी है। वहीं कुछ बच्चों को तो नामी शहरों व स्कूलों में भी पढ़ने के लिए भेजा गया है। दिल्ली, कोलकत्ता और बिहार के 300 से 400 बच्चों को मदद मिल रही है। दिल्ली के वसंत कुंज के तीन सेंटरों में 300 से 350 बच्चे हैं, वहीं बिहार में केवल 50 हैं।