नारी डेस्क: रमा एकादशी, जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एक महत्वपूर्ण और फलदायी एकादशी है, इस वर्ष 28 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन भक्तगण विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और रमा एकादशी की कथा सुनना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कथा न सुनने पर पूजा अधूरी मानी जाती है। आइए, जानते हैं रमा एकादशी की असली कथा।
रमा एकादशी का महत्व
रमा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और यह धनतेरस तथा दिवाली से पहले आता है। इसका पारण गोवत्स द्वादशी के दिन किया जाता है, जिससे इस दिन गौ पूजन का भी महत्व बढ़ जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु इस दिन गहन शयन अवस्था में होते हैं, और यह पूजा का अंतिम एकादशी है। 15 दिन बाद देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु जागेंगे।
रमा एकादशी की कथा
कथा की शुरुआत धर्मराज युधिष्ठिर के भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न पूछने से होती है। युधिष्ठिर ने पूछा, "हे भगवन, कार्तिक कृष्ण एकादशी का क्या नाम है और इसके फल क्या हैं?" भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर दिया कि इसका नाम "रमा" है, जो बड़े पापों का नाश करने वाली है। भगवान कृष्ण ने एक प्राचीन राजा मुचुकुंद की कहानी सुनाई। राजा मुचुकुंद एक धर्मात्मा और विष्णुभक्त थे। उनकी एक पुत्री चंद्रभागा थी, जिसका विवाह शोभन नामक राजा के साथ हुआ। एकादशी के दिन शोभन भूख सहन नहीं कर सके और उन्होंने व्रत रखा। हालांकि, उन्होंने भूख के कारण प्राण खो दिए।
चंद्रभागा अपने पति की अंत्येष्टि के बाद अपने पिता के घर वापस लौट गई। रमा एकादशी के पुण्य से शोभन को मंदराचल पर्वत पर एक दिव्य नगर प्राप्त हुआ। वहाँ वह धन-धान्य से युक्त और अप्सराओं से भरा एक सुंदर नगर था। एक ब्राह्मण, सोम शर्मा, जब तीर्थयात्रा पर गया, तो उसने शोभन को पहचान लिया और चंद्रभागा को बताया। चंद्रभागा ने अपने पुण्य से शोभन का नगर स्थिर करने का निर्णय लिया। वामदेव ऋषि के आशीर्वाद से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वह शोभन के पास गई। चंद्रभागा ने बताया कि उसने आठ वर्षों से एकादशी का व्रत किया है, और उसके पुण्य से शोभन का नगर स्थिर हो जाएगा। इस प्रकार, वे दोनों एक साथ आनंदपूर्वक रहने लगे।
रमा एकादशी का फल
भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि जो लोग इस व्रत को करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वे विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं। रमा एकादशी का व्रत करने वाले भक्तों को विशेष लाभ होता है, और यह कथा सुनने मात्र से पुण्यफल प्राप्त होता है।
रमा एकादशी का व्रत न केवल भक्तों को मानसिक और आध्यात्मिक शांति देता है, बल्कि यह उन्हें मुक्ति और समृद्धि का भी आश्वासन देता है। इस दिव्य व्रत को श्रद्धा और भक्ति से मनाना चाहिए ताकि भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहे।