नारी डेस्क: वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर न केवल हमारे पर्यावरण के लिए, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। एक हालिया रिसर्च में यह पाया गया है कि प्रदूषण के कारण बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। यही नहीं, गर्भवती महिलाओं पर भी प्रदूषण का गहरा असर पड़ता है। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
वायु प्रदूषण और ऑटिज्म के बीच संबंध
रिसर्च के मुताबिक, गर्भावस्था के शुरुआती तीन महीनों में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चे में ऑटिज्म का खतरा काफी बढ़ सकता है। यह समस्या लड़कों में अधिक देखी गई है। वायु प्रदूषण के हानिकारक तत्व जैसे PM2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल (PCB) इस बीमारी के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
ऑटिज्म के प्रकार
ऑटिज्म को मुख्य रूप से चार प्रकारों में बांटा गया है:
अस्पेर्गेर सिंड्रोम
अस्पेर्गेर सिंड्रोम को ऑटिज्म का हल्का रूप माना जाता है। इसमें बच्चे का व्यवहार कुछ अजीब हो सकता है, लेकिन उनकी मानसिक क्षमता सामान्य होती है। ये बच्चे आमतौर पर कुछ खास विषयों में गहरी रुचि दिखाते हैं। जैसे विज्ञान, गणित, या किसी खास शौक में वे बहुत उत्साही हो सकते हैं। हालांकि, इन बच्चों में अन्य बच्चों की तरह सामाजिक व्यवहार और बातचीत में कठिनाई हो सकती है। वे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में अजनबी महसूस कर सकते हैं और कई बार सामाजिक स्थिति में खुद को असहज पाते हैं।
परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर (PDD)
परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर एक प्रकार का ऑटिज्म है, जिसमें लक्षण बहुत हल्के होते हैं। इस डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चे बातचीत करने में अजनबी महसूस करते हैं और अक्सर सामाजिक मेलजोल से बचते हैं। वे नए लोगों से मिलते समय संकोच करते हैं और किसी नए वातावरण में घुल-मिल नहीं पाते। हालांकि, उनके मानसिक विकास में आमतौर पर कोई गंभीर समस्या नहीं होती है, लेकिन उनकी सामाजिक स्थिति में कुछ बाधाएं आती हैं। समय के साथ, अगर उचित देखभाल और उपचार किया जाए, तो ऐसे बच्चे समाज में बेहतर तरीके से शामिल हो सकते हैं।
ऑटिज्म डिसऑर्डर (क्लासिक ऑटिज्म)
ऑटिज्म डिसऑर्डर या क्लासिक ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों में सामाजिक और मानसिक विकास में रुकावट होती है। यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार में गहरे बदलाव ला सकता है। ऐसे बच्चे अक्सर दूसरों से मेलजोल नहीं करते और दूसरों के साथ बातचीत करने में परेशानी महसूस करते हैं। उनका व्यवहार असामान्य हो सकता है, जैसे कि वे हकलाते हैं, रुक-रुक कर बोलते हैं या बातों को पूरी तरह से समझने में कठिनाई महसूस करते हैं। इनके साथ-साथ शारीरिक विकास में भी धीमापन देखा जा सकता है और उनकी सोच की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है।
रैट्स सिंड्रोम
रैट्स सिंड्रोम एक दुर्लभ प्रकार का ऑटिज्म है, जो ज्यादातर लड़कियों में पाया जाता है। इसमें दिमाग का आकार सामान्य से छोटा हो जाता है, और इसके कारण बच्चे को शारीरिक विकास में भी समस्याएं होती हैं। रैट्स सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों में मांसपेशियों का विकास बाधित होता है और वे चलने में कठिनाई महसूस करते हैं। इसके साथ-साथ हाथों के टेढ़े होने, सांस लेने में कठिनाई और मिर्गी जैसी समस्याएं भी सामने आ सकती हैं। यह सिंड्रोम गर्भवस्था के दौरान उत्पन्न होने वाली समस्याओं के कारण हो सकता है, और इसका इलाज समय रहते होना बहुत जरूरी है।
ऑटिज्म की पहचान और लक्षण
ऑटिज्म के लक्षण सामान्य रूप से 12-18 महीने की उम्र में दिखाई देने लगते हैं। इन लक्षणों में बच्चे का सामाजिक व्यवहार प्रभावित होता है, वे दूसरों से अधिक संपर्क नहीं करते और हमेशा खुद में खोए रहते हैं। बोलने में भी उन्हें समस्या हो सकती है, जैसे कि वे शब्दों को समझने में दिक्कत महसूस करते हैं या स्पष्ट रूप से बोलने में असमर्थ होते हैं। इसके अलावा, उनके शारीरिक विकास में भी रुकावटें देखी जाती हैं। कभी-कभी ये बच्चे शारीरिक गतिविधियों में कमजोर हो सकते हैं और असामान्य तरीके से प्रतिक्रिया कर सकते हैं। यह लक्षण जीवन भर बने रह सकते हैं, इसलिए समय पर पहचान और इलाज बहुत जरूरी है।
प्रदूषण से बचने के उपाय
ऑटिज्म के बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रदूषण से बचने के उपायों पर ध्यान देना बेहद महत्वपूर्ण है। खासतौर पर गर्भवती महिलाओं को इस दिशा में सावधानी बरतनी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण का सीधा असर बच्चे के मस्तिष्क के विकास पर पड़ता है, जिससे ऑटिज्म और अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को चाहिए कि वे अपने आसपास की वायु गुणवत्ता पर ध्यान दें और खुले वातावरण में कम समय बिताएं। इसके अलावा, घर के अंदर वायु शुद्धिकरण उपकरणों का इस्तेमाल करें ताकि हवा साफ और ताजगी से भरी रहे। बच्चों को शुद्ध और ताजे हवा में खेलने का मौका दें और उनका आहार भी पौष्टिक हो, ताकि उनका मानसिक और शारीरिक विकास सही ढंग से हो सके।
विशेषज्ञ से सलाह लें
अगर आपको किसी बच्चे में ऑटिज्म के लक्षण दिखें, तो तुरंत विशेषज्ञ से परामर्श लें। सही समय पर इलाज और देखभाल से इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। विशेषज्ञ बच्चों के लक्षणों का गहराई से विश्लेषण करेंगे और फिर उपयुक्त उपचार की दिशा में कदम उठाएंगे। समय रहते इलाज शुरू करना बच्चे की मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
नोट : यह लेख जागरूकता बढ़ाने के लिए है। किसी भी समस्या के लिए डॉक्टर से परामर्श लें।