एस्ट्राजेनेका कंपनी द्वारा बनाई गई वैक्सीन के डाटा को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। एस्ट्राजेनेका कंपनी ने दावा किया था उनकी वैक्सीन वायरस को खत्म करने में 90% तक असरदार है। मगर, एस्ट्राजेनेका की एक गलती की वजह से वैक्सीन पर दोबारा सवाल खड़े हो रहे हैं। हालांकि कंपनी यह चूक एक तरह से वरदान है। अब एक्सपर्टस सवाल कर रहे हैं कि क्या यह डाटा ऐडिशनल टेस्टिंग के दौरान भी बरकरार रहेगा।
ऑक्सफर्ड वैक्सीन के ट्रायल में चूक बनी वरदान
दरअसल, कंपनी ने बताया कि जिन कोरोना वॉलिटिंयर्स को वैक्सीन की पूरी डोज दी गई है उनपर यह 62% तक ही असरदार है जबकि कम वैक्सीन की कम डोज लेने वाले लोगों में यह 92% तक असरदार है। कंपनी की तरफ से जारी किए गए ताजा नतीजे के मुताबिक, डोज की स्ट्रेंथ के हिसाब से वैक्सीन 90% या 62% तक कारगार है। मगर, डोज पैटर्न के हिसाब से वैक्सीन 90% असर कर रही है उन्हें सिर्फ आधी खुराक ही दी गई है। दो फुल डोज वाले वॉलिंटियर्स में यह दवा उतनी असर नहीं कर रही।
ट्रायल की कौन सी बात छिपाई गई?
एस्ट्राजेनेका के मुताबिक, कोरोना के 2,800 वॉलिंटियर्स को कम जबकि 8,900 लोगों को फुल डोज दी गई है। ऐसे में एक्सपर्ट सवाल उठा रहे हैं कि डोज में इतना अंतर क्यों डाला गया है और वैक्सीन की कम डोज ज्यादा असर क्यों कर रही है। हालांकि रिसर्चर्स खुद इस बात का अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है।
एक्सपर्ट्स के मन में बैठ गया शक
वैक्सीन डेटा पर उठे सवालों के बीच एक्सपर्ट का शक और गहरा हो गया है। कंपनी पार्टिसिपेंट को पूरी डोज देने वाले थे लेकिन कुछ मरीजों को आधी डोज दी गई, जिसकी वजह से रिसर्चर्स डोज के अलग-अलग पैटर्न तक पहुंच गए। यही वजह है कि एक्सपर्ट के मन में इस वैक्सीन को लेकर संदेह आ गया है।
बता दें कि WHO ने कोरोना वैक्सीन के लिए 50% एफेकसी का पैमाना रखा है, जिसकी वजह से अब लोग ऑक्सफर्ड की वैक्सीन से उम्मीदें रख रहे हैं। वहीं, फाइजर, मॉडर्ना या रूस की Sputnik V का भी आखिरी ट्रायल चल रहा है।