बच्चों में कुपोषण की समस्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में 9.2 लाख से अधिक बच्चे 'गंभीर रूप से कुपोषित' हैं, जिनमें से सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में बिहार के हैं। चिंता की बात तो यह है कि कोरोना महामारी के कारण गरीब तबके के बच्चों में स्वास्थ्य व पोषण की समस्या बढ़ सकती है।
करीब 9,27,606 ‘गंभीर रूप से कुपोषित’ बच्चों की पहचान
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक, साल 2020, नवंबर तक भारत में 6 महीने से 6 साल तक के करीब 9,27,606 बच्चे कुपोषित पाए गए। इनमें उत्तर प्रदेश के 3,98,359 और बिहार के 2,79,427 बच्चे शामिल हैं। जबकि मध्य प्रदेश ,लद्दाख, नगालैंड, लक्षद्वीप, मणिपुर में एक भी कुपोषित बच्चा नहीं मिला। जबकि 2011 के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 0-6 साल के 2.97 करोड़ और बिहार में 1.85 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं।
ऐसे होती है कुपोषित बच्चों की पहचान
WHO के मुताबिक, जिन बच्चों का वजन लंबाई के अनुसार कम हो, बांह के मध्य के ऊपरी हिस्से की परिधि 115 mm से कम, पोषक तत्वों की कमी के कारण सूजन हो, उन्हें गंभीर रूप से कुपोषित माना जाता है। वहीं, गंभीर रुप से कुपोषण के शिकार बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, जिससे उनके मरने की आशंका 9 गुणा बढ़ जाती है।
जब भुखमरी होगी तो कुपोषण भी होगा
‘हक सेंटर’ की सह संस्थापकका कहना है, “बेरोजगारी के कारण आर्थिक संकट बढ़ा है, जिसका भुखमरी पर भी असर होगा और भुखमरी होगी तो कुपोषण भी होगा। सरकार के पास एक स्पष्ट प्रोटोकॉल है और उन्हें उसे बढ़ाने की जरूरत है।’’ बता दें कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों से कुपोषित बच्चों की पहचान करने की अपील की, ताकि उनका इलाज किया जा सके। इसके बाद 9,27,006 कुपोषित बच्चों का आंकड़ा सामने आया, जो महामारी के कारण कारण बढ़ सकता है। इसी के साथ यह भी डर है कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर बच्चों को अधिक प्रभावित कर सकती है।
पौष्टिक आहार देना जरूरी
शिशु आहार में कद्दू, गाजर हरी पत्तेदार सब्जियां, मांस, मछली, फलियां और मेवे जैसे पोषण युक्त आहार पर्याप्त मात्रा में शामिल करने में मां के शैक्षणिक स्तर का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है जबकि घरेलू आर्थिक स्थिति का संबंध दुग्ध उत्पादों के उपभोग पर अधिक देखा गया है।