अगर इंसान में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है तमिलनाडु के मदुरै जिले के सकीमंगलम गांव की 23 साल की रेवती ने, जो 23 जुलाई से शुरू हो रहे टोक्यो ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने जा रही है। रेवती भारत की चार गुणा 400 मीटर मिश्रित रिले टीम का हिस्सा हैं। लेकिन आपकों बतां दें कि यहां तक पहुंचने का सफर रेवती के लिए बेहद कांटो भरा था जिसे पार कर रेवती अब अपने सपने को पूरा करने जा रही है।
आपकों बतां दें कि रेवती वीरामनी केवल 5 साल की उम्र में अनाथ हो गई थी जिसके बाद उनका पालन पोषण उनकी दिहाड़ी मजदूर नानी ने किया। रेवती को शुरुआत में नंगे पैर दौड़ना पड़ा क्योंकि उनके पास जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे, लेकिन अब यह धाविका ओलंपिक में दौड़ने का सपना साकार करने जा रही है।
माता-पिता के निधन के बाद हमे पालने के लिए नानी ईंट भट्ठों पर काम करती थी-
रेवती ने अपने इस संघर्ष भरे सफर के बारे में बताया कि मुझे बताया गया था कि मेरे पिता के पेट में कुछ तकलीफ थी जिसके कारण उनका निधन हो गया, इसके छह महीने बाद दिमागी बुखार से मेरी मां भी चल बसी। जब उनकी मौत हुई तो मैं छह बरस की भी नहीं थी। मुझे और मेरी बहन को मेरी नानी के अराम्मल ने पाला। हमें पालने के लिए वह बहुत कम पैसों में भी दूसरों के खेतों और ईंट भट्ठों पर काम करती थी।'
रेवती और उनकी बहन अपनी नानी के जज्बे के कारण स्कूल जा पाई
रेवती ने कहा कि हमारे रिश्तेदारों ने नानी को कहा कि वह हमें भी काम पर भेजें, लेकिन उन्होंने इनकार करते हुए कहा कि हमें स्कूल जाना चाहिए और पढ़ाई करनी चाहिए। रेवती और उनकी बहन 76 साल की अपनी नानी के जज्बे के कारण स्कूल जा पाई। दौड़ने में प्रतिभा के कारण रेवती को रेलवे के मदुरै खंड में टीटीई की नौकरी मिल गई जबकि उनकी छोटी बहन अब चेन्नई में पुलिस अधिकारी है।
शुरुआत में नानी ने दौड़ने की परमिशन नहीं दी लेकिन बाद में...
वहीं अपने इस ओलंपिक में दौड़ने का सपने को लेकर रेवती ने बताशुरुआत मेंया कि तमिलनाडु के खेल विकास प्राधिकरण के कोच के कन्नन ने स्कूल में मेरी प्रतिभा को पहचाना गया। रेवती की नानी शुरुआत में उन्हें दौड़ने की स्वीकृति देने से हिचक रही थी, लेकिन कन्नन ने उन्हें मनाया और रेवती को मदुरै के लेडी डोक कॉलेज और छात्रावास में जगह दिलाई।
मैं कॉलेज प्रतियोगिताओं में नंगे पैर दौड़ी
रेवती ने कहा कि मेरी नानी ने कड़ी मेहनत करके हमें पाला। मैं और मेरी बहन उनके कारण बच पाए, लेकिन मेरी सारी खेल गतिविधियां कन्नन सर के कारण हैं। मैं कॉलेज प्रतियोगिताओं में नंगे पैर दौड़ी और 2016 में कोयंबटूर में राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप के दौरान भी मैने नंगे पैर दौड़ लगाई। इसके बाद कन्नन सर ने सुनिश्चित किया कि मुझे सभी जरूरी किट, पर्याप्त खान-पान मिले और अन्य जरूरतें पूरी हों।
कन्नन सर के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग की
रेवती ने 2016 से 2019 तक कन्नन के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग की और फिर उन्हें पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) में राष्ट्रीय शिविर में चुना गया है। कन्नन के मार्गदर्शन में 100 मीटर और 200 मीटर में चुनौती पेश करने वाली रेवती को गलीना बुखारिना ने 400 मीटर में हिस्सा लेने को कहा। बुखारिना राष्ट्रीय शिविर में 400 मीटर की कोच थी।
मैं ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगी
उन्होंने कहा कि गलीना मेडम ने मुझे 400 मीटर में दौड़ने को कहा। कन्नन सर भी राजी हो गए। मुझे खुशी है कि मैंने 400 मीटर में हिस्सा लिया और मैं अब अपने पहले ओलंपिक में जा रही हूं। कन्नन सर ने मुझे कहा था कि एक दिन मैं ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करूंगी और चीजें काफी तेजी से हुई। यह सपना साकार होने की तरह है। मैं ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगी।