कहते हैं कि अगर कुछ कर दिखाने की चाहत और हौंसला हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं लगती। यह बात डॉ. तान्या ठाकुर पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं, जिहें बचपन से ही चलने में दिक्कत होती थी। जब कोई भी उनकी समस्या का हल ना निकाल पाया तो उन्होंने खुद डॉक्टर बनने का फैसला किया। इस इरादे के बीच उन्हें कई मुश्किलें भी झेलनी पड़ी, एक समय में तो वह डिप्रेशन में चली गई थी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आज वह अपनी काबिलियत से डॉ. तान्या ठाकुर के नाम से जानी जाती है।
बचपन से ही थी चलने में दिक्कत
डॉ. तान्या ठाकुर का जन्म 11 जून 1997 को हुआ था। उन्होंने बताया, "जब मैंने चलना शुरू किया तो मेरे माता-पिता ने देखा कि मुझे चलने में कठिनाई हो रही है.. इसलिए वह मुझे विभिन्न अस्पतालों में ले जाने लगे, लेकिन मेरी सभी रिपोर्ट सामान्य रही। मुझे एम्स, पीजीआई और अन्य प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में भी ले जाया गया। डॉक्टर यह पता लगाने का कोशिश कर रहे थे कि मेरे पैर में किस तरह प्रॉब्लम हुई है लेकिन कोई इसकी वजह ना जान सका।"
11 साल की उम्र में किया डॉक्टर बनने का फैसला
11 साल की उम्र में तान्या ने खुद डॉक्टर बनने का फैसला किया, ताकि वो अपनी समस्या का हल ढूंढ सके। उन्होंने कहा, "मैं स्कूल में बहुत होनहार छात्र थी। मेरे दोस्तों और शिक्षकों ने हमेशा मेरा साथ दिया। मैंने अपनी स्कूली शिक्षा कुंदन विद्या मंदिर, लुधियाना से की। 12वीं के बाद 2015 में मेरा चयन एमबीबीएस के लिए हुआ।"
शारीरिक प्रॉब्लम के चलते हुए MBBS काउंसलिंग में रिजेक्ट
तान्या बहुत खुश थी क्योंकि उन्हें उनकी मेहनत व लगन का फल मिल गया था। MBBS के लिए चुने जाना उनके लिए किसी सपने से कम नहीं था लेकिन एक वजह से उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। तान्या बताती हैं, "जब उन्होंने देखा कि मैं शारीरिक रूप से अक्षम हूं तो उन्होंने मुझे MBBS काउंसलिंग में रिजेक्ट कर दिया गया। वह समय मेरे लिए सचमुच बहुत भी बुरा था। मैं डिप्रेशन में चली गई। मेरा खुद को मारने का मन कर रहा था लेकिन मैं अपने सपनों के लिए इतनी समर्पित थी कि मैंने होम्योपैथी में डॉक्टर बनने का फैसला किया।"
फिर होम्योपैथिक डॉक्टरी में बनाई पहचान
फिर क्या तान्या दोबारा अपने सपनों को पूरा करने में लग गई। इसके बाद उन्हें भगवान महावीर होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, लुधियाना में प्रवेश मिल गया और वह अपने डॉक्टर बनने के सफर पर निकल पड़ी। उन्होंने बताया, "कक्षाओं तक पहुंचने के लिए मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ता था। मगर, मैंने इस साल अपनी रोटेटरी क्लिनिकल इंटर्नशिप पूरी की थी और भगवान के आशीर्वाद और अपने माता-पिता के अपार प्यार से मैं आखिरकार डॉ. तान्या ठाकुर हूं।"
माता-पिता ने पूरा सहयोग दिया
उनका कहना है कि माता-पिता वास्तव में हर चीज और जीवन के हर पहलू में सहायक होते हैं। अगर माता-पिता का साथ ना होता तो वह यहां तक नहीं पहुंच पाती। वहीं उन्होंने संदेश देते हुए कहा, "अगर आपको शारीरिक रूप से कोई भी समस्या आती है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप वही पे रुक जाओ और आगे कोई प्रयास मत करो... एक लक्ष्य सेट करो और उसे हासिल करने में अपनी पूरी जान लगा दो... अस्वीकृति भी मिलती है तब भी मत रुको"