जन्माष्टमी का त्योहार देश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल जन्माष्टमी का पर्व दो दिन मनाया जाएगा। आज और कल दो दिन जन्माष्टमी मनाई जाएगी। कई लोग आज व्रत रख रहे हैं तो कई कल रखेंगे। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में रोहिणी नक्षत्र को कान्हा जी का जन्म हुआ था। कान्हा जी के कई सारे रुप हैं, लेकिन जन्माष्टमी के पावन अवसर पर लोग लड्डू गोपाल की पूजा करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कान्हा जी को लड्डू गोपाल क्यों कहते हैं? तो चलिए बताते हैं आपको इसके पीछे की कथा...
छोटे रुप को कहते हैं लड्डू गोपाल
लड्डू गोपाल का कान्हा जी का छोटा रुप हैं। बाल कान्हा जी घुटनों के बल चलते हैं। लड्डू गोपाल के हातथ में लड्डू होता है। क्या आपने सोचा है कि कान्हा जी को तो माक्खन और दही पसंद है, लेकिन फिर भी उन्हें लड्डू गोपाल क्यों कहा जाता है?
कुम्भनदास से जुड़ी है लड्डू गोपाल की कहानी
ब्रज भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त कुम्भनदास नाम के व्यक्ति थे। कुम्बनदास का छोटा बेटा था जिसका नाम रघुनंदन था। कुम्भनदास श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे, दिन रात वह श्रीकृष्ण की पूजा करते थे। इसलिए वह अपना घर और मंदिर छोड़कर भी कहीं नहीं जाते थे। परंतु एक बार कुम्भनदास को वृंदावन से भागवत कथा का निमंत्रण आया। इस निमंत्रण को वह मना नहीं कर पा रहे थे। बहुत समय तक सोचने के बाद उन्होंने जाने का मन बना लिया। अपने छोटे बेटे को वह पूजा पाठ की सारी जिम्मेदारी दे गए। उन्होंने बेटे को कहा कि शाम को श्रीकृष्ण को भोग जरुर लगाना है।
श्रीकृष्ण ने धारण किया बाल स्वरुप
पिता के कथानुसार, शाम को रघुनंदन ने पूरे विधि विधान के साथ पूजा की और प्रभु को थाली परोसी। लेकिन जब थाली परोसी तो सामने छोटा बच्चा था। रघुनंदन से सोचा की भगवान स्वंय अपने हाथों से खाना खा लेंगे। परंतु ऐसा नहीं हुआ और वह जोर-जोर से रोने लगा। उसे लगा की कान्हा जी उससे नाराज हो गए हैं। उसके रोने की आवाज सुनकर श्रीकृष्ण से रहा नहीं गया और बाल स्वरुप धारण करके वह रघुनंदन के सामने प्रकट हो गए। रघुनंदन भी उन्हें देखकर बहुत खुश हुआ और उन्हें प्रणाम करके भोग की थाली नीचे रख दी।
घर लौटकर कुम्भनदास को हुआ शक
रघुनंदन के द्वार परोसा गया सारा प्रसाद प्रभु ने खा लिया। इसके बाद वह उसे आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। जैसे कुम्भनदास घर वापिस आए तो थाली साफ देखकर बहुत हैरान हुए। उन्होंने सोचा की शायद हो सकता है कि रघुनंदन को भूख लगी होगी तो उसने खाना खा लिया होगा। परंतु रोज यही होने लगा। कुम्भनदास ने देखा कि रघुनंदन उनसे ज्यादा पूजा में दिलचस्पी ले रहा है। इसका सच जानने के लिए वह एक दिन मंदिर की दीवार के पीछे छिप गए थे।
बेटे रघुनंदन ने पूजा करके परोसी भोग की थाली
शाम जैसे हुई रघुनंदन ने कान्हा जी की पूजा की और उन्हें भोग की थाली परोसी। जैसे उसने थाली परोसी भगवान श्रीकृष्ण बालरुप में प्रकट हो गए। कुम्भनदास यह सारा दृश्य दीवार के पीछे से देख रहे थे। वो देखकर भाव से भर गए और कान्हा जी के चरणों में गिर गए। जिस वक्त कुम्भनदास भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में गिरे कान्हा जी के हाथ में लड्डू था। उसी रुप में श्रीकृष्ण वहां जड़ गए। गोपाल तो श्रीकृष्ण को कहते हैं, परंतु उनके हाथ में लड्डू था। इसलिए उनका नाम लड्डू गोपाल पड़ गया । इसलिए जन्माष्टमी पर उनके मोहक रुप लड्डू गोपाल की पूजा की जाने लगी।