नारी डेस्क: गरुड़ पुराण हिंदू धर्म के 18 महापुराणों में से एक है और यह विष्णु पुराण का ही भाग माना जाता है। इसे मृत्यु और आत्मा के रहस्यों को समझाने वाला ग्रंथ माना जाता है। गरुड़ पुराण को मृत्यु के बाद पढ़ने की परंपरा का गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसे आम दिनों में न पढ़ने के पीछे कई कारण और मान्यताएं हैं।
गरुड़ पुराण का विषय
गरुड़ पुराण में मृत्यु, आत्मा, पुनर्जन्म, और कर्म-फल के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें यमलोक, नरक, स्वर्ग, और आत्मा की यात्रा का वर्णन होता है। इसे मृत्यु के बाद आत्मा की शांति और परलोक के रहस्यों को समझाने के लिए पढ़ा जाता है। माना जाता है कि गरुड़ पुराण पढ़ने से मृत आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलती है। इसे सुनने से जीवित लोगों को भी अपने कर्मों के प्रभाव और मृत्यु के बाद की स्थिति का बोध होता है। यह परिवार को मृत्यु के समय उचित कर्मकांड और दान आदि की जानकारी प्रदान करता है।
आम दिनों में न पढ़ने का कारण
गरुड़ पुराण का विषय गहन और गंभीर है। इसमें मृत्यु और नरक के विभिन्न रूपों का वर्णन होता है, जो आम दिनों में भय और मानसिक अशांति पैदा कर सकता है। हिंदू धर्म में हर दिन को उत्सव और सकारात्मक ऊर्जा से जीने पर जोर दिया गया है। गरुड़ पुराण के गंभीर विषय इस ऊर्जा को प्रभावित कर सकते हैं। गरुड़ पुराण विशेष रूप से मृत आत्मा की शांति के लिए पढ़ा जाता है। इसे अन्य समय पर पढ़ने से इसका उद्देश्य पूरा नहीं होता।
गरुड़ पुराण की शिक्षाएं और संदेश
गरुड़ पुराण जीवन में अच्छे कर्म करने और बुराई से बचने की शिक्षा देता है। यह सिखाता है कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, बल्कि आत्मा का नया सफर है। इसमें धर्म के पालन, दान, और सत्य की महत्ता बताई गई है। गरुड़ पुराण का पाठ मृत्यु के बाद 12 दिन तक होता है, खासकर अंतिम संस्कार और श्राद्ध के दौरान। इसे ब्राह्मण या विद्वान पंडित द्वारा पढ़ा जाता है ताकि परिवार और मृत आत्मा को इसका लाभ मिले।
आम दिनों में पढ़ने की स्थिति
हालांकि गरुड़ पुराण को विशेष अवसरों के लिए आरक्षित किया गया है, लेकिन यदि कोई इसे अध्ययन के लिए पढ़ना चाहता है, तो ऐसा गुरु या विद्वान की देखरेख में किया जा सकता है। गरुड़ पुराण को मृत्यु के समय पढ़ने की परंपरा आत्मा की शांति और कर्म-फल की समझ को बढ़ाने के उद्देश्य से है। आम दिनों में इसे न पढ़ने की सलाह इस ग्रंथ की गहरी प्रकृति और धार्मिक परंपराओं को ध्यान में रखते हुए दी गई है।