पांच दिनों तक चलने वाले दिवाली त्योहार का पांचवां और अंतिम दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भाई-बहन के मधुर बंधन को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भाई दूज हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की दूसरी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह दिन 6 नवंबर को पड़ रहा है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर सिंदूर लगाती हैं और उनकी सलामती की दुआ करती हैं। बदले में भाई उन्हें कुछ खास गिफ्ट करते हैं। मगर, क्या आप जानते हैं कि भाई-दूज मनाने की परंपरा कहां से और कैसे शुरू हुई।
यमराज भी लगवाते हैं अपनी बहन से तिलक
लोककथाओं के अनुसार, भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था, जिन्होंने यमराज तथा यमुना को जन्म दिया। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वहीं, यमराज अपनी बहन यमुना को जान से भी ज्यादा प्यार करते थे। शादी के बाद यमुना अपने भाई को घर बुलाती थी लेकिन काम का बोझ बढ़ने के कारण वह अपनी बहन को मिल नहीं पा रहे थे।
एक दिन कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष तिथि में वह अपनी बहन से मिलने पहुंच गए। यमुना भी इतने दिनों बाद अपने भाई को चौखट पर खड़ा देख बहुत प्रसन्न हुई और उनके लिए स्वादिष्ट व्यंजन बनाएं। यमराज ने यमुना को अनेक उपहार भेंट किए। उन्होंने अपनी छोटी बहन से वादा भी किया कि वह फिर से वापिस आएंगे। साथ ही उन्होंने यमुना से उसकी मनचाही इच्छा मांगने को कहा। तब वह यमराज से वरदान मांगती है कि हर साल इस दिन वह उससे मिलने आएं और उसका आतिथ्य स्वीकार करें। बस उसी दिन से हर साल इस दिन भाई दूज मनाया जाता है।
यमुना में स्नान करने का विशेष महत्व
इस पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भाई का तिलक करने के बाद भोजन करवाने से भाई को अन्न धन्न की प्राप्ति होता है। वहीं, पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन यमुना में स्नान करने से मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है और उसे मुक्ति मिल जाती है।
देशभर में जुड़े अलग रीति-रिवाज
इस दिन को बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर चिह्नित करती हैं। इसके बाद वे आरती करते हैं और बदले में उपहार दिए जाते हैं। हालांकि भारत में भी इस त्यौहार को अलग-अलग तरीके से सेलिब्रेट किया जाता है।
. बंगाल में तिलक के लिए चंदन का लेप और काजल का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद धान (धान) और दरबा (घास) से आशीर्वाद दिया जाता है।
. वहीं, मणिपुर में 'निंगोल चाकुबा', नेपाल में 'भाई टीका', गोवा, महाराष्ट्र और कर्नाटक में 'भाऊ बीज' और पश्चिम बंगाल में 'भाई फोटा' के नाम से जाना जाता है।