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गर्भवती महिला को जरूर जाननी चाहिए प्रेमानंद जी महाराज की ये 4 बातें

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 04 May, 2025 05:56 PM
गर्भवती महिला को जरूर जाननी चाहिए प्रेमानंद जी महाराज की ये 4 बातें

 नारी डेस्क: गर्भावस्था न सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया है, बल्कि मानसिक और आत्मिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण होती है। प्रेमानंद जी महाराज ने हाल ही में अपने प्रवचनों में गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ जरूरी बातें बताई हैं, जो शास्त्रों पर आधारित हैं। इन बातों को अपनाकर एक मां अपने गर्भस्थ शिशु को अच्छे संस्कार और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान कर सकती है। आइए जानते हैं इन जरूरी बातों को आसान भाषा में।

 गर्भावस्था में सत्संग और भगवान की कथाएं सुनना

प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि गर्भ में पल रहा शिशु, मां के कानों से सुनी गई बातें सुन सकता है। इसलिए गर्भवती महिला को अच्छे और सात्विक विचारों से जुड़े सत्संग, भगवान का कीर्तन और पुराणों की कथाएं जरूर सुननी चाहिए। इससे बच्चे के भीतर बचपन से ही आध्यात्मिक ऊर्जा और सकारात्मक संस्कार विकसित होते हैं।

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प्रह्लाद महाराज की कहानी बताती है कि जब उनकी मां कयाधु, देवऋषि नारद के आश्रम में रहीं और भगवान की कथाएं सुनीं, तो उनके गर्भ में पल रहे प्रह्लाद एक महान भक्त बने।

 सात्विक भोजन से बनता है शुद्ध मन और तन

गर्भवती महिलाओं को मांसाहार, नशीले पदार्थों और तामसिक आहार से दूर रहना चाहिए। प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि सात्विक भोजन – जैसे फल, दूध, घी, हरी सब्जियां, मूंग आदि – ना सिर्फ मां को स्वस्थ रखते हैं, बल्कि शिशु के शरीर और दिमाग के विकास में भी मदद करते हैं। तामसिक भोजन से गर्भ में पल रहे शिशु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और उसका स्वभाव आक्रामक या कामुक भी बन सकता है।

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गर्भ ठहरने के साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन

महाराज जी बताते हैं कि जैसे ही यह स्पष्ट हो जाए कि महिला गर्भवती है, दंपत्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। यानी पति-पत्नी को यौन संबंधों से दूर रहना चाहिए ताकि शिशु का संपूर्ण मानसिक और शारीरिक विकास बिना किसी रुकावट के हो। शास्त्रों में कहा गया है कि गर्भधारण के बाद यदि मां-पिता संयमित जीवन जिएं तो संतान धर्मात्मा और तेजस्वी होती है।

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गर्भावस्था में मन से करें अच्छे आचरण और विचारों का पालन

प्रेमानंद जी महाराज ने यह विशेष रूप से कहा है कि मां बनने जा रही स्त्री को अपने विचारों, व्यवहार और आचरण पर ध्यान देना चाहिए। क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या जैसे भावों से दूर रहकर सेवा, प्रेम, करुणा और शांतिपूर्ण जीवन को अपनाना चाहिए। यह सब शिशु के मन में जन्म से पहले ही संस्कार के रूप में जाता है।

प्रेमानंद जी महाराज का यह संदेश हमें याद दिलाता है कि गर्भावस्था केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा भी है। इस दौरान मां का हर कार्य, हर विचार, हर भोजन और हर ध्वनि शिशु के भविष्य का आधार बनती है। यदि मां सत्संग, भक्ति, सात्विक भोजन और ब्रह्मचर्य का पालन करे तो उसे न केवल एक स्वस्थ, बल्कि संस्कारी और तेजस्वी संतान की प्राप्ति होती है।
 

 

 

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