भले ही भारत में तलाक की दर दुनिया में सबसे कम है लेकिन पिछले दो दशकों में यह बढ़ रही है। लोग निष्पक्ष तलाक के मुकदमे को अंजाम दे रहे हैं। मगर, जब महिलाओं की बात आती है तो तलाक और अलिमोनी के अधिकार को अक्सर पति को लूटने के रूप में देखा जाता है। जो महिलाएं अलिमोनी की मांग करती हैं उन्हें स्वार्थी, आत्मसम्मान और लालची के रूप में लेबल दे दिया जाता है।
मगर, अलीमोनी की मांग करने पर महिलाओं को शर्मिंदा करना किस हद तक सही है? सिर्फ इसलिए कि एक महिला ने तलाक लेना चुना, क्या इसका मतलब यह है कि उसने अपनी नैतिकता, सम्मान और वैवाहिक संपत्ति पर अधिकार खो दिया है? क्या यह मान लेना सही है कि हर महिला जो अपने पति को तलाक देने का विकल्प चुनती है और गुजारा भत्ता मांगती है, वह लालची है?
गुजारा भत्ता मांगना महिला का अधिकार है, लालच नहीं
महिलाओं के मामले में तलाक लेने का फैसला अपने आप में चुनौतीपूर्ण होता है। हमारे समाज में महिलाओं को किसी भी स्थिति में शादी के रिश्ते को बचाने के लिए कहा जाता है, फिर भले ही उस बंधन में उसे यातनाएं या कलह-कलेश ही क्यों ना झेलना पड़ रहा है। वहीं, अगर महिलाएं खराब शादियों पर अपनी खुशी, विवेक और न्याय को चुनती हैं तो कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है। उसकी नैतिकता पर सवाल उठाए जाते है, उससे उसकी प्रतिष्ठा और स्वाभिमान छीन लिया जाता है। जबकि अगर पुरुष पत्नी को तलाक देने का विकल्प चुनते हैं तो उन्हें सहानुभूति मिलती है।
महिलाओं को कैसे सशक्त बनाती है अलीमोनी?
सबसे पहले, हमें यह समझने की जरूरत है कि संविधान के पन्नों में महिलाओं के कुछ अधिकार क्यों हैं, इसके कारण हैं। तलाक के लिए गुजारा भत्ता का अधिकार महत्वपूर्ण है। यह उन महिलाओं को सशक्त बनाता है जो तलाक के बाद वित्तीय सहायता के डर से अपनी स्वतंत्रता और खुशी का मूल्य नहीं कमाती हैं। कई महिलाएं नौकरी से पहले शादी कर लेती हैं या शादी के बाद अपनी नौकरी छोड़ देती हैं।
औरतों की बेरोजगारी दर पुरुषों से 4 गुना अधिक
आंकड़ों की मानें तो 2005 और 2012 के बीच 20 मिलियन महिलाओं ने अपनी नौकरी छोड़ दी और उनमें से लगभग 65 प्रतिशत महिलाओं ने दोबारा नौकरी नहीं की। ऐसी स्थितियों में, गुजारा भत्ता तलाक के बाद उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद करता है। ऐसे में तलाक के बाद इसकी मांग करने वाली महिला को शर्मसार करना ठीक नहीं है।
पुरुष भी मांग सकते हैं गुजारा भत्ता
हिंदू विवाह अधिनियम 1965 के अनुसार अगर पत्नी पति से अधिक कमाती है या पुरुष पैसा कमाने में असमर्थ है तो वो भी गुजारा भत्ता की मांग कर सकते हैं। 2008 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अगर कोई पत्नी तलाक के बाद खुद का पाल-पोषण करने में सक्षम है तो उसका गुजारा भत्ता का रद्द भी किया जा सकता है। हालांकि एक अध्ययन के अनुसार, भारत में महिलाओं में बेरोजगारी दर पुरुषों की तुलना में दोगुने से भी अधिक है।
गुजारा भत्ता मांगने वाली महिलाओं को शर्मसार करना बंद करें
अब समय आ गया है कि हम गुजारा भत्ता की मांग करने वाली महिलाओं को शर्मसार करना बंद करें। तलाक और गुजारा भत्ता मांगना एक महिला का मूल अधिकार है। वह अपने मूल अधिकारों का प्रयोग करने के लिए अनैतिक, लालची या स्वार्थी नहीं है। भले ही महिलाओं को शादी और तलाक में कानूनी अधिकार हैं, लेकिन बहुतों को उनके बारे में जानकारी नहीं है।
अब समय आ गया है कि हम महिलाओं को रूढ़ियों को दूर करने और बिना किसी डर के अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें।