दो साल से कम उम्र के बच्चे एडीनोवायरस के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, लेकिन अभिभावकों को घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि 90 प्रतिशत मामलों का इलाज घर पर ही किया जा सकता है, हालांकि सावधानी बरतनी चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि पेरेंट्स को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चे मास्क पहनें और भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचें।
इन कारण बच्चे बनते हैं शिकार
एम्स, जोधपुर से जुड़े जानेमाने बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण कुमारेंदु सिंह का कहना है कि ‘कोविड के विपरीत, 10 साल से कम उम्र के बच्चे एडीनोवायरस के प्रति संवेदनशील होते हैं, उनमें भी दो वर्ष से कम आयु के बच्चों अधिक संवेदनशील होते हैं जबकि दो से पांच वर्ष बीच की आयु वाले अपेक्षाकृत कम संवेदनशील होते हैं।'' उनका कहना है कि घबराने की कोई बात नहीं है, एडीनोवायरस से आमतौर पर श्वसन संबंधी बीमारियां होती हैं जिसमें सामान्य सर्दी, निमोनिया आदि शामिल है।
क्या है एडीनोवायरस
एडीनोवायरस आमतौर पर डबल स्ट्रैंडड डीएनए जीनोम वायरस है और इसके संपर्क में आने के बाद व्यक्ति को सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण होते हैं जैसे बुखार, गले में दर्द, छींक आना, नाक बहना या नाक बंद होना आदि। हालांकि, कुछ मामलों में इससे गंभीर लक्षण भी हो सकते हैं और व्यक्ति को दस्त, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस और कंजक्टिवाइटिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
इस तरह रखें बच्चों का ख्याल
विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल एडीनोवायरस संक्रमण के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है जो सर्दी या इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी का कारण बनता है। लगभग 90 प्रतिशत मामले हल्के लक्षण वाले होते हैं और आराम के अलावा बुखार कम करने वाली पेरासिटामोल जैसी दवा दी जा सकती है। भाप लेने और सांस या नेबुलाइज़्ड ब्रोन्कोडायलेटर से भी राहत मिल सकती है।'' उन्होंने कहा कि गंभीर रूप से प्रभावित कुछ बच्चों को अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता होती है। उन्होंने बच्चे को मनोवैज्ञानिक सदमे से बचाने के लिए बच्चे के साथ उसकी मां को रखने की सलाह दी।
बच्चों को आती है ये परेशानी
विशेषज्ञों ने कहा- "बच्चों को अपने हाथ अच्छी तरह से धोने चाहिए और खांसी और जुकाम से पीड़ित व्यक्तियों के पास नहीं जाना चाहिए। एडीनोवायरस ऐसा वायरस होता है जो श्वास नली, आंत, आंख या मूत्र पथ की परत पर पनपता है। यह वायरस जुकाम, निमोनिया, पाचन से संबंधित बीमारियों तथा यूरीन इंफेक्शन का कारण बन सकता है। इस इंफेक्शन से प्रभावित बच्चों को आमतौर पर सांस संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ता है।