भगवान विष्णु अपने भक्तों से बहुत प्रेम करते हैं। उनके लिए वो कुछ भी कर सकते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण श्रीमद्भागवत की पुराण कथा से मिलता है। जहां मुसीबत में फंसे अपने भक्त हाथी के प्राण को बचाने के लिए भगवान विष्णु नंगे पैर दौड़ पड़े थे। आइए आपको बताते हैं कथा विस्तार में....
मगरमच्छ से जान छुड़ाने के लिए गजराज ने किया था भगवान विष्णु का स्मरण
बहुत समय पहले की बात है। क्षीरसागर में त्रिकुट नाम का पर्वत था, जहां पर हाथियों का परिवार रहता था। इनका मुखिया था गजराज गजेंद्र । हर रोज की तरह जब गजराज गजेंद्र अपने परिवार के साथ घूमने जा रहे थे तो सब को प्यास लगी। सारा परिवार गजराज के साथ सरोवर में पानी पीने गए, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि वहां पर मगरमच्छ है। उसने गजराज के पैर पकड़ लिया और पानी के अंदर खींचने लगा। मगरमच्छ से बचने के लिए गजराज ने पूरी शक्ति लगा दी पर मगरमच्छ उस पर भारी पड़ रहा था। जिसके बाद गजराज दर्द से चीखने लगा। गजराज की आवाज सुनकर दूसरे हाथी भी चिंघाड़ने लगा। परिवार ने भी मिलकर उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन सारे असफल हुए। अपना काल नजदीक आते देख गजराज ने भगवान विष्णु का स्मरण किया, जिनके वो परम भक्त थे और प्रतिदिन उनकी पूजा करते थे। अपने भक्त की पुकार सुनकर भगवान विष्णु भी नंगे पैर अपने गरुण पर सवार होकर अपने भक्त की प्राणों की रक्षा के लिए दौड़ पड़े और अपने सुर्दशन चक्र से मगरमच्छ का गला काटकर उसका वध कर दिया।
इस कहानी से हमें ये ही सीख मिलती है कि कोई भी पीड़ा में मदद मांगे तो उसके लिए समय, परिस्थिति, पद की परवाह नहीं करना चाहिए और बस पीड़ित की मदद करनी चाहिए। इस कथा से माध्यम से भगवान विष्णु हमें संदेश देते हैं कि हमेशा अपने चाहनेवाले और प्रिय लोगों को कष्ट होने पर उनकी मदद करनी चाहिए।