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आटा गूंथने के बाद उंगली के निशान क्यों बनाते हैं? जानिए इस परंपरा के पीछे का सच!

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 16 Dec, 2024 03:27 PM
आटा गूंथने के बाद उंगली के निशान क्यों बनाते हैं? जानिए इस परंपरा के पीछे का सच!

 नारी डेस्क: हमारे दैनिक जीवन में कई ऐसे कार्य होते हैं जो हमारी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े होते हैं। इन्हीं में से एक है आटा गूंथने के बाद उसमें उंगली के निशान बनाना। दादी-नानी इसे जरूरी मानती हैं और इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारण बताए जाते हैं। यह परंपरा न केवल हमारी संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि इसका प्रभाव हमारे जीवन पर भी पड़ता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

रसोई और भोजन का महत्व

हिंदू धर्म में भोजन को सिर्फ पेट भरने का माध्यम नहीं, बल्कि प्रसाद और ईश्वर का आशीर्वाद माना गया है। यही कारण है कि रसोई और भोजन से जुड़ी हर प्रक्रिया को पवित्रता और नियमों के साथ करना जरूरी समझा जाता है। दादी-नानी की बातें, जो अक्सर मिथक या अंधविश्वास लगती हैं, उनके पीछे गहरे अर्थ छिपे होते हैं। आटे में उंगली के निशान बनाने का चलन भी इसी का एक हिस्सा है।

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उंगली के निशान बनाने का धार्मिक कारण

पितरों का भोजन (पिंडदान से जुड़ा संदर्भ)

शास्त्रों में कहा गया है कि हमारे पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। इसमें चावल या आटे के गोल पिंड बनाए जाते हैं, जो पितरों का भोजन माने जाते हैं। आटा गूंथने के बाद वह भी पिंड के समान गोल बनता है। दादी-नानी इस गोल आटे को सीधे रोटी बनाने के लिए उपयुक्त नहीं मानतीं। उंगली के निशान बनाकर वे यह संकेत करती हैं कि यह अब पितरों का भोजन नहीं है, बल्कि परिवार के लिए है। यह प्रक्रिया शुभता और परंपरा का पालन सुनिश्चित करती है।

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अशुभता को दूर करना

दादी-नानी के अनुसार, अगर बिना उंगलियों के निशान बनाए आटे से रोटी बनाई जाए, तो यह अशुभ मानी जाती है। उंगलियों के निशान लगाने से इसे पिंड के समान होने से अलग किया जाता है, ताकि यह सामान्य भोजन बन जाए।

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अन्य पकवानों में भी होता है यह नियम

न केवल रोटी, बल्कि बाटी, बाफले, बालूशाही और वड़ा जैसे गोल आकार के पकवानों में भी यह नियम लागू होता है। इनमें उंगलियों के निशान लगाकर या गड्ढे बनाकर यह संकेत दिया जाता है कि यह पिंड नहीं है और इसे प्रसाद या सामान्य भोजन के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण

इस प्रक्रिया का वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। आटे में उंगलियों के निशान बनाने से गूंथा हुआ आटा अच्छे से ऑक्सीजन के संपर्क में आता है, जिससे उसकी बनावट और गुणवत्ता बेहतर होती है। यह प्रक्रिया आटे को हल्का और आसानी से पचने वाला बनाती है।

दादी-नानी की परंपराओं का महत्व

दादी-नानी की ये परंपराएं भले ही आज के आधुनिक समय में पुराने जमाने की बातें लगें, लेकिन इनके पीछे जीवन को शुभ और सकारात्मक बनाने की भावना जुड़ी होती है। ये परंपराएं हमें हमारी जड़ों और संस्कृति से जोड़ती हैं और परिवार की भलाई का संदेश देती हैं।

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आटा गूंथने के बाद उंगली के निशान बनाना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि पितरों के सम्मान, परिवार की भलाई और शुभता की भावना से जुड़ा हुआ कार्य है। यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है, जो हमें यह सिखाता है कि छोटे-छोटे कार्यों में भी बड़ा संदेश छिपा हो सकता है। इसलिए अगली बार जब आप आटा गूंथें, तो अपनी दादी-नानी की इस सीख को याद रखें और परंपरा का पालन जरूर करें।
 
 

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