मेहंदी क्या है : मेंहदी रचाने के काम के लिए मेंहदी की पत्तियों को इस्तेमाल होता है। सबसे अच्छी पत्तियां ताजी तोड़ी हुई होती है। लेकिन ये हर जगह में मौजूद नही होती, इसलिए सूखी पत्तियां हर नगर या गांव में किराने की दुकान पर मिलती हैं। बिसातखाने वाले या रंगवाले भी मेंहदी रखते है। वनौषधियां बेचने वाले पंसारियों के यहां तो इसके मिलने के कोई संदेह नही रहता। बाजार से खरीदी जाने वाली इन पत्तियों में डंठल अौर बीज भी मिले रहते हैं,इसलिए इन्हें साफ करना पड़ता है। फिर पानी में फुलाकर सिल पर पीसा जाता है अौर लुगदी बना ली जाती है। आजकल मेंहदी के पिसे हुए सूखे चूर्ण या पाऊडर का चलन बढ़ गया है जो पोलीथिन के लिफाफों में मिलता है। इस चुर्ण में पानी मिला देने से भी लुगदी बन जाती है।लुगदी में पानी कुछ ज्यादा रखा जाता है जिससे वह ढीली रहे अौर उसे हथेलियो पर लगाए जाने में सुविधा हो।
लुगदी बनाते समय उससें थोडा-सा घी, मक्खन या तेल भी डाल देते है। इससे रंग गाढ़ा आता है।कहीं कहीं रंग गाढ़ा करने के लिए कत्था डाला जाता है। मेंहदी तैयार हो जाने पर सहेलियो की टोली रचाने बैठती है। किसी सींक या सिलाई की नोंक लुगदी में डुबोकर सींक से हथेलियों पर तरह तरह की आकृतियां बनायी जाती हां। इच्छानुसार अंकर कर लेने के बाद मेंहदी को सूखने के लिए छोड दिया जाता हैं। जब तक लेप सूख न जाए ,इस बात की सावधानी रखनी पड़ती है कि हाथो से कोई एेसा काम न किया जाए जिससे मेंहदी गीली हो जाए या पुछ पाए। सूख जाने पर पानी से मेंहदी उतार ली जाती है । जिस जगह मेंहदी लगी होती है, वहां भूरापन लिए नारंगी रंग की छाप उभर अाती है।
राजस्थान में इन्हें पंडिताइन कहा जाता है। वहां आज भी मेंहदी के मौसम में पंडिताइनें इतनी व्यस्त होती है कि दम मारने की फुरसत नही मिलती।
समय के साथ-साथ बदलती है मेंहदी की कला
बदलते युग के साथ मेंहदी की कला भी बदलती रही है। हथेली पर रची मेंहदी की रेखाअों में नारी का संपूर्ण व्यक्तित्व अभिव्यत्व होता रहा है। उसके मानसिक, शरीरिक, आर्थिक , समाजिक विकास का समूचा चित्रण। हाथ पर रची मेंहदी देखकर जाना जाता है कि नारी का व्यकत्वि कितना सुरूचिपूर्ण है।
मेंहदी पर गीतों की संख्या सैकड़ों या हज़ारों में हो सकती है। हर भाषा के, हर समुदाय के मेंहदी रचाते वक्त गाये जाने वाले गीत है। विवाह या अन्य समारोहों पर गाये जाने वाले गीतों में मेंहदी संबंधित गीत भी होते है। अनेक गीतों में जीवन के विविध पक्षों का मोहक वर्णन है अौर मन पर छा जाने वाले मार्मिकता । यही नही कुछ दिन पहले तक मेंहदी बेची भी गीत गाकर ही जाती है।
नगरों अौर कस्बों की सड़कों पर फेरी लगाकर मेंहदी बेचने वाले अकेले या समूहो में चले थे। ग्राहक का ध्यान अाकृष्ट करने के लिए ये गीत गाते चलते जिनमें उनकी मेंहदी में छिपे कमाल के गुणों को दिलचस्प बखान होता। इनमें एक गीक वह भी होता जिसमें कहा गया कि जिसकी जान जाती है कि वह अपने प्रियतन की कितनी प्यारी हैं।
भारतीय फिल्मों में भी उभरा है मेंहदी का रंग
मेंहदी का यह रंग भारतीय फिल्मों में भी उभारकर आया हैं। लगभग हर भाषा में, विशेष रूप से हिंदी फिल्मों में नारी चरित्रो की हथेलियां मेंहदी रची होती है। पार्वती हो यां लक्ष्मी,उर्वशी या मेनका, द्रौपदी या सीता, धार्मिक पौराणिक फिल्मो के नारी पात्र के हाथ मेंहदी रचे होना अनिवार्य है। आधुनिक कहानियों पर बनी फिल्मों में भी हिंदू या मुस्लिम नारी के हाथ पर मेंहदी जरूर होेती है। यहां तक मेंहदी को कथा का प्रधान विषय बनाकर फिल्में भी बनी है।
'मेंहदी' नाम से बनी फिल्स मुस्लिम संस्कृति की बानगी देने वाली सबसे सशत्क फिल्म है। मेहबूब की मेंहदी में प्यार की रूमानियत उभरकर सामने आयी तो मेेंहदी रचे मेरे हाथ में प्रणय की दीवानगी।
'मेंहदी लगी मेरे हाथों'इसी नास की फिल्म का कथा-गीत है। राजकपूर की बेमिसाल पर नाकाम फिल्म"आह"में राजा की आएगी बारात " गीत में जब लता मंगेेशवर की आवाज़ की अंतरा -मेंहदी से पीले होंगे हाथ--"पर पहुंचता है तो रंग की छाप सुनने वाले के मानस पर लग जाती है।