हर धर्म का अपना कोई न कोई रीति-रिवाज होता हैं। भारत में कई धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं। जहां हिंदुओं को सिर पर आंचल या पल्लु लेते देखा गया है, वहीं मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहन अपने धर्म के कानून का पालन करती है। हर धर्म में इनके पीछे कुछ कारणों का जिक्र है लेकिन आज हम आपको इन्ही के बारे में बताने जा रहे हैं कि आखिर मुस्लिम महिलाएं बुर्का या हिजाब क्यों पहनती हैं?
मुस्लिमों की धार्मिक किताब कुरान में लिखी है वजह
मुस्लिमों की धार्मिक किताब कुरान में इसके बारे में बताया गया है। अब हम आपको बताते हैं बुर्का पहनने की असली वजह क्या है? दरअसल, इस किताब में महिला और पुरुष को कैसे कपड़े पहनने चाहिए, इसका जिक्र किया गया है। महिलाओं के लिए लिखा गया है कि उन्हें ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जिसके बाद उनकी आंखें, चेहरा, हाथ और पैर पराए आदमी को न दिखाई दे।
कुरान में नहीं किया गया 'बुर्का' शब्द का वर्णन
कुरान को इस्लाम की धार्मिक किताब माना जाता है। इस्लाम के समर्थकों के अनुसार उनके हर सवाल का जवाब कुरान में दिया गया है। अगर पहनावे की बात की जाए तो कुरान में लिखा गया है कि महिलाएं अपने पूरे शरीर को ढकें लेकिन कुरान में बुर्का शब्द का कहीं भी वर्णन नहीं किया गया। उसमें केवल यह बताया गया है कि महिलाओं का सिर ढकां होना चाहिए और कपड़े शालीन होने चाहिए।
इस तरह बुर्का बना मुस्लिम मजहब का परिधान
बुर्का शब्द का प्रचलन ईरान से आया है। जब इस्लाम मजहब ईरान में आया तब उन लोगों ने वहां के प्रचलित परिधान को अपना लिया और धीरे-धीरे ये उनके मजहब का परिधान बन गया।
हिजाब और बुर्के में क्या अंतर है?
इस मुद्दे पर शुरू से ही इस्लामी विद्वानों में ख़ासी बहस चलती रही है कि महिलाओं और पुरुषों के लिबास की सही परिभाषा क्या बोनी चाहिए है। इसी बहस के बीच दो शब्द निकले हैं जिनमें से एक हिजाब और दूसरा नक़ाब। हिजाब एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है सिर ढंकना और नक़ाब का मतलब है पूरी तरह से शरीर को ढंकना, जिसे बुर्का भी कहा जा सकता है।
इसके अलावा बुर्का वह परिधान है जिसमें पूरा शरीर ढका होता है और सिर्फ़ आंखों से झांकने के लिए एक जाली लगी होती है लेकिन हिजाब में पूरा चेहरा नज़र आता है मगर बाल और गर्दन छुपे होते हैं।
पश्चिमी देशों में हिजाब ज़्यादा लोकप्रिय है लेकिन बुर्का एशियाई देशों में प्रचलन है।