छठ महापर्व की आज से शुरुआत हो गई है। ये चार दिवसीय पर्व है, जिसमें लोग सूरज भगवान की पूजा करते हुए संतना की लंबी उम्र की कामना करते हैं। इस व्रत को सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि व्रती को शुद्धता का बहुत ध्यान रखना पड़ता है और लगातार 36 घंटे तक का निर्जला व्रत रखना होता है।
भगवान सूर्य की होती है पूजा
छठ पूजा को प्रकृति की पूजा के रूप में भी देखा जाता है। सूर्य भगवान की पूजा करते हुए लोग उन्हें जिंदगी को रौशन करने के लिए शु्क्रिया कहते है। व्रती नदी, तालाब के किनारे पूजा करते हैं जो सफाई की प्रेरणा देती है। वहीं ये पर्व नदियों को भी प्रदूषण मुक्त बनाने की प्रेरणा देता है। केला, सेब, गन्ना जैसे कई फलों की प्रसाद के रूप में पूजा की जाती है।
भगवान सूर्य की बहन हैं छठी देवी
मान्यता है कि छठी मैया भगवान सूर्य की बहन है, इसलिए लोग सूर्य की तरफ अर्घ्य दिखाते हैं और छठ मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्यदेव की आराधना करते हैं। ज्योतिष में सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना गया है। अगर आप सिर्फ सूर्य देव की ही आराधना करते हैं और नियमित रूप से उन्हें अर्घ्य देते हैं तो सारे ग्रह खुश हो जाएंगे और आपको कई सारे लाभ मिलेंगे।
जाने लें छठ पूजा के नियम
छठ पूजा के पहले दिन की शुरुआत नहाय- खाए से होती है। दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य की पूजा तो चौथे दिन उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। नहाए- खाए के दिन व्रती नदियों में स्नान रते हैं। इस दिन चावल, चने की दाल आदि बनाई जाती है। खरना के दिन व्रती पूरे दिन भूखे रहने के बाद शाम को खाना खाते हैं। षष्ठी के दिन सूर्य को अर्ध्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं और डूबते हुए सूर्य की पूजा करते हैं।
जानिए सूर्य की पूजा का वैज्ञानिक महत्व
सूर्य की पूजा करते हुए जल से अर्घ्य देने के पीछे रंगों का विज्ञान छिपा है। कहते हैं मानव के शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से वो कई तरह के रोगों का शिकार होते हैं। सुबह के समय सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से ये रंग संतुलित हो जाते हैं और इससे शरीर की इम्यूनिटी भी स्ट्रांग होती है। त्वचा संबंधी रोगों का भी खतरा कम होता है।