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बच्‍चों में तेजी से बढ़ रहा है Juvenile Diabetes, पेरेंट्स इन बातों का रखें ध्यान

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 08 Apr, 2022 03:35 PM
बच्‍चों में तेजी से बढ़ रहा है Juvenile Diabetes, पेरेंट्स इन बातों का रखें ध्यान

डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जो सिर्फ बड़ों को ही नहीं बल्कि बच्चों को भी अपनी चपेट में ले रही हैं। डायबिटीज मरीजों के लिए शुगर लेवल को कंट्रोल रखना सबसे जरूरी है। अगर शुगर लेवल कम या ज्यादा हो जाए तो मरीज की जान तक जा सकती है। बॉलीवुड एक्ट्रेस मौसमी चटर्जी की बेटी पायल भी जुवेनाइल डायबिटीज के कारण दुनिया को अलविदा कह गई थी। वह जुवेनाइल डायबिटीज से जूझ रही थीं, जिसके कारण वो कोमा में चली गईं और फिर उनकी मौत हो गई। यह बच्चों में होनी वाली डायबिटीज है। चलिए जानते हैं कि जुवेनाइल डायबिटीज क्या है और इसे कैसे कंट्रोल किया जाए...

क्या है जुवेनाइल डायबिटीज?

टाइप-1 डायबिटीज जुवेनाइल डायबिटीज कहा जाता है, जो 18 साल से कम उम्र के बच्चों में देखने को मिलती है। इसमें पेन्क्रियाज इंसुलिन बेहद कम या कुछ मामलों में बनाता बंद कर देता है। इंसुलिन एक हार्मोन है, जिसकी मदद से शुगर कोशिकाओं में जाकर शरीर में ऊर्जा देता है। मगर, शरीर में वायरल, बैक्टीरियल संक्रमण या एंटीबॉडीज बनने के कारण इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इसकी वजह से इंसुलिन बनना कम या बंद हो जाता है, जिससे शुगर लेवल अनियमित हो जाता है।

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टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज में क्या फर्क है?

• टाइप-1 ज्यादा गंभीर है क्योंकि ये बच्चों पर असर डालती है जबकि टाइप-2 के साथ इतनी परेशानी नहीं होती। टाइप-1 डायबिटीज में इम्यूनिटी पेन्क्रियाज की कोशिकाओं पर हमला करती हैं जिससे इंसुलिन प्रभावित होता है। मगर, टाइप-2 डायबिटीज में पेन्क्रियाज पर्याप्त इंसुलिन का नहीं बना पाता।

• टाइप 1 आनुवांशिक वजह से बहुत कम उम्र में या कभी-कभी जन्‍म से हो जा सकता है। जबकि टाइप 2 डायबिटीज के लिए आनुवांशिक के साथ मोटापा, हाइपरटेंशन, नींद की कमी और खराब लाइफस्‍टाइल जिम्मेदार है।

क्यों होती है जुवेनाइल डायबिटीज?

यह एक तरह का ऑटो-इम्यून रोग है। आमतौर पर प्रतिरोध क्षमता बैक्टीरिया और वायरस को खत्म करने का काम करता है। मगर, ऑटो-इम्यून की स्थिति में इम्यून सिस्टम इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को ही नष्ट करने लगता है। वैसे तो यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन ज्यादातर मामले  4-7 साल या 10-14 साल की उम्र में देखने को मिलते हैं।

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कैसे पहचानें और कब अलर्ट हो जाएं?

- बहुत ज्यादा प्यास लगना
-  बार-बार यूरिन आना
- रात में सोते समय बिस्तर गीला करना
- अत्यधिक भूख लगना
- तेजी से वजन घटना
- बच्चे का मूड बदलना
- धुंधला दिखना जैसे लक्षण नजर आए तो उसे अनदेखा ना करें।

बच्चा डायबिटिक है तो पेरेंट्स क्या ध्यान रखें?

• सबसे पहले तो दवाओं का ध्यान रखें और समय-समय पर शुगर लेवल चेक करते रहें।
• बच्चों को डाइट में मीठी चीजें ना दें। साथ ही उनकी डाइट में फल, हरी सब्जियां, करेला, लौकी का जूस आदि शामिल करें। कोल्ड ड्रिंक्स, जंक फूड, चावल, मिठाई, आलू से परहेज रखें।
• ज्यादा देर तक बच्चों को खाली पेट न रहने दें और हर 2 घंटे में कुछ ना कुछ खाने के लिए दें।
• उन्हें योग, व्यायाम, एक्सरसाइज और अधिक फिजिकल एक्टिविटी करने के लिए प्रेरित करें। पेरेंट्स भी बच्चों के साथ एक्सरसाइज करें।

 

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