भाई- बहन के प्यार और विश्वास से सजा रक्षाबंधन का त्योहार 30 और 31 अगस्त को मनाया जाएगा । इस त्योहार के आने से पहले ही इसकी खुशी हर भाई- बहन के चेहरे पर साफ नजर आती है। इस दिन बहन भाई को टीका करती है और उनकी लंबी उम्र की दुआ मांगते हुए उनकी कलाई पर राखी बांधती हैं। वहीं भाई की बहन को तोहफा देता है और जिंदगीभर उसकी रक्षा करने का वजन भी देता है। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर क्यों और किस वजह से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। दरअसल, हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पहली राखी पत्नी ने पति को बंधी थी, तब से ही रक्षाबंधन का प्रचलन शुरु हुआ। ये पति कोई और नहीं देवराज इंद्र थे और पत्नी थीं इंद्राणी। पौराणिक कथाओं की मानें तो देवताओं और असुरों के बीच युद्ध चल रहा था। तब इंद्राणी ने देवगुरु बृहस्पति से इंद्र को विजय दिलाने का निवेदन किया। इस पर बृहस्पति ने एक धागा अभिमंत्रित कर इंद्राणी को दिया और उसने अपने पति इंद्र के हाथ में उसे बांधा। इसके प्रभाव से युद्ध में असुरों को पराजित कर देवता विजयी हो गए....
राखी के बदले सखी की रक्षा
एक और पौराणिक था के हिसाब से इंद्रप्रस्थ की स्थापना के बाद युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध कर दिया था। वध में पुराण प्रसिद्ध सुदर्शन चक्र फिर ने श्रीकृष्ण के पास लौटा तब उसकी तीक्ष्ण धार से कृष्ण की एक उंगली से रक्त बह निकला। यह देख वहां उपस्थित द्रोपदी ने अपने बहुमूल्य वस्त्रों में से एक का सिरा फाड़कर कृष्ण के हाथ में पट्टी बांध दी थी। किंवदंती बै कि तब कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया था कि अवसर आने पर इस वस्त्र के एक धागे का अनेक गुना लौटाकर उनकी रक्षा करेंगे। इस वचन को श्रीकृष्ण ने निभाया भी। हस्तिनापुर की राजसभा में जब द्रौपदी के वस्त्रहरण का कुत्सित प्रयास हुआ और किसी ने सहायता न की, तब द्रौपदी ने आर्त स्वर में कृष्ण को पुकारा और उन्होंने वस्त्रों का विस्तार कर द्रौपदी के मान की रक्षा की थी।
प्रकृति की भी रक्षा का बंधन
रक्षासूत्र केवल मनुष्यों को नहीं बल्कि प्रकृति से लेकर देव प्रतिमाओं तक व्याप्त है। आज भी श्रावण पूर्णिमा को महिलाओं सहित असंख्य पुरुष अपने आराध्य देवता की प्रतिमा पर रक्षासूत्र अर्पित करते हैं। प्रतिमा पूर्णाकार हैं तो हाथ में बांधते हैं अन्यथा पुष्फ के साथ चढ़ाते हैं। घरों में तुलसी के बिरवे को भी राखी बांधी जाती है।